वांछित मन्त्र चुनें

अ॒ग्निं व॑र्धन्तु नो॒ गिरो॒ यतो॒ जाय॑त उ॒क्थ्यः॑। म॒हे वाजा॑य॒ द्रवि॑णाय दर्श॒तः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agniṁ vardhantu no giro yato jāyata ukthyaḥ | mahe vājāya draviṇāya darśataḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्निम्। व॒र्ध॒न्तु॒। नः॒। गिरः॑। यतः॑। जाय॑ते। उ॒क्थ्यः॑। म॒हे। वाजा॑य। द्रवि॑णाय। द॒र्श॒तः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:10» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:8» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वज्जनो ! आप लोग जैसे समिधों से (अग्निम्) अग्नि बढ़ता है वैसे (नः) हम लोगों की (गिरः) उत्तम प्रकार से शिक्षित वाणियों को (वर्धन्तु) वृद्धि करें (यतः) जिससे (महे) श्रेष्ठ (वाजाय) विज्ञान और (द्रविणाय) ऐश्वर्य के लिये (दर्शतः) देखने और (उक्थ्यः) प्रशंसा करने योग्य विद्वान् पुरुष (जायते) प्रकट होता है ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। अध्यापक और उपदेशक पुरुषों को ऐसा प्रयत्न करना चाहिये जिससे कि पढ़ने और सुननेवाले जनों की उत्तम शिक्षा, विद्या और सभ्यता बढ़े और वे धनवान् होवें ॥६॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वांसो भवन्तः समिद्भिरग्निमिव नो गिरो वर्द्धन्तु यतो महे वाजाय द्रविणाय दर्शत उक्थ्यो जायते ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्निम्) पावकमिव (वर्धन्तु) वर्द्धयन्तु। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदं णिजर्थोऽन्तर्गतः। (नः) अस्माकम् (गिरः) सुशिक्षिता वाचः (यतः) (जायते) (उक्थ्यः) प्रशंसितो योग्यो विद्वान् (महे) महते (वाजाय) विज्ञानाय (द्रविणाय) ऐश्वर्य्याय (दर्शतः) द्रष्टुं योग्यः ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। अध्यापकोपदेशकैस्तथा प्रयत्नो विधेयो यथाऽध्येतॄणां श्रोतॄणाञ्च सुशिक्षाविद्यासभ्यता वर्धेरन् श्रीमन्तश्च स्युः ॥६॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. अध्यापक व उपदेशकांनी असा प्रयत्न केला पाहिजे, की विद्यार्थी व श्रोते यांच्यामध्ये सुशिक्षण, विद्या व सभ्यता वाढावी आणि ते श्रीमंत व्हावेत. ॥ ६ ॥