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ब॒भ्रा॒णः सू॑नो सहसो॒ व्य॑द्यौ॒द्दधा॑नः शु॒क्रा र॑भ॒सा वपूं॑षि। श्चोत॑न्ति॒ धारा॒ मधु॑नो घृ॒तस्य॒ वृषा॒ यत्र॑ वावृ॒धे काव्ये॑न॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

babhrāṇaḥ sūno sahaso vy adyaud dadhānaḥ śukrā rabhasā vapūṁṣi | ścotanti dhārā madhuno ghṛtasya vṛṣā yatra vāvṛdhe kāvyena ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ब॒भ्रा॒णः। सू॒नो॒ इति॑। स॒ह॒सः॒। वि। अ॒द्यौ॒त्। दधा॑नः। शु॒क्रा। र॒भ॒सा। वपूं॑षि। श्चोत॑न्ति। धाराः॑। मधु॑नः। घृ॒तस्य॑। वृषा॑। यत्र॑। व॒वृ॒धे। काव्ये॑न॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:1» मन्त्र:8 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:14» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्याजन्म की प्रशंसा को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सूनो) सन्तान ! जैसे (शुक्रा) शरीर आत्मा और बल तथा (रभसा) रोगरहित (वपूंषि) रूपवान् शरीरों को (दधानः) धारण करता हुआ जो (मधुनः) मीठे (घृतस्य) जल की (धाराः) धाराओं के समान वाणी (श्चोतन्ति) झरती हैं (यत्र) जिस व्यवहार में (वृषा) बलवान् जन (काव्येन) विद्वानों के निर्माण किये और पढ़े हुए कविताई आदि कर्म के साथ (वावृधे) बढ़ता है (सहसः) बल से (व्यद्यौत्) प्रकाशित होता है वैसे ही इन उक्त पदार्थों से (बभ्राणः) पुष्ट होते हुए बढ़ो ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे उत्तम शिक्षा पाये हुए सज्जनों की वाणी जल के समान कोमल और सरस होती हैं, जैसे ब्रह्मचारी बलवान् होता है, वैसे सन्तानों को चाहिये कि विद्या सुशिक्षाओं को अच्छे प्रकार ग्रहण कर बलवान् और सुशील होवें ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्याजन्मप्रशंसां प्राह।

अन्वय:

हे सूनो यथा शुक्रा रभसा वपूंषि दधानो यथा वा मधुनो घृतस्य धाराः श्चोतन्ति यत्र वृषा काव्येन वावृधे सहसो व्यद्यौत्तथैतैर्बभ्राणः संस्त्वं वर्धस्व ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (बभ्राणः) पुष्यन् (सूनो) संतान (सहसः) बलात् (वि) (अद्यौत्) विद्योतते (दधानः) धरन् (शुक्रा) शुक्राणि शरीरात्मवीर्य्याणि (रभसा) रोगरहितानि (वपूंषि) रूपवन्ति शरीराणि (श्चोतन्ति) स्रवन्ते (धाराः) जलस्य गतयइव वाचः (मधुनः) मधुरस्य (घृतस्य) उदकस्य (वृषा) बलिष्ठः (यत्र) यस्मिन् (वावृधे) वर्द्धते। अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदैर्घ्यम्। (काव्येन) विद्वद्भिर्निर्मितेन सह ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सुशिक्षितानां वाचो जलवत् कोमला जायन्ते यथा ब्रह्मचारी वीर्यवान् भवति तथाऽपत्यैर्विद्यासुशिक्षास्संगृह्य बलवद्भिः सुशीलैर्भवितव्यम् ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी सुशिक्षित लोकांची वाणी जलाप्रमाणे कोमल व सरस असते व ब्रह्मचारी बलवान असतो तसे संतानांनी विद्या व सुशिक्षण ग्रहण करून बलवान व सुशील व्हावे. ॥ ८ ॥