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अव॑र्धयन्त्सु॒भगं॑ स॒प्त य॒ह्वीः श्वे॒तं ज॑ज्ञा॒नम॑रु॒षं म॑हि॒त्वा। शिशुं॒ न जा॒तम॒भ्या॑रु॒रश्वा॑ दे॒वासो॑ अ॒ग्निं जनि॑मन्वपुष्यन्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

avardhayan subhagaṁ sapta yahvīḥ śvetaṁ jajñānam aruṣam mahitvā | śiśuṁ na jātam abhy ārur aśvā devāso agniṁ janiman vapuṣyan ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अव॑र्धयन्। सु॒ऽभग॑म्। स॒प्त। य॒ह्वीः। श्वे॒तम्। ज॒ज्ञा॒नम्। अ॒रु॒षम्। म॒हि॒ऽत्वा। शिशु॑म्। न। जा॒तम्। अ॒भि। आ॒रुः॒। अश्वाः॑। दे॒वासः॑। अ॒ग्निम्। जनि॑मन्। व॒पु॒ष्य॒न्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:1» मन्त्र:4 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:13» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब स्त्री पुरुष के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जनिमन्) प्रशंसित जन्म वा (वपुष्यन्) अपने को रूप की इच्छा करनेवाले विद्वन् ! जैसे (अश्वाः) विद्या व्याप्तिशील (देवासः) विद्वान् जन (श्वेतम्) श्वेतवर्ण (अरुषम्) अश्वरूप (अग्निम्) अग्नि को (सप्तयह्वीः) सात महान् स्त्री (सुभगम्) सुन्दर ऐश्वर्ययुक्त (जज्ञानम्) जन्म दिलानेवाले का (महित्वा) सत्कार (जातम्) उत्पन्न हुए (शिशुम्) बालक के (न) समान (अवर्धयन्) बढ़ावें वे निरन्तर सुख को (अभ्यारुः) प्राप्त होती हैं वैसे तुम भी प्रयत्न करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सात स्त्रियाँ एक पुत्र की वृद्धि करती हैं, वैसे जो अग्निविद्या को जानकर ऐश्वर्य्य की उन्नति करते हैं, वे महिमा को प्राप्त होते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ स्त्रीपुरुषविषयमाह।

अन्वय:

हे जनिमन्वपुष्यन् विद्वन् ! यथा अश्वा देवासः श्वेतमश्वमरुषमग्निं सप्त यह्वीः सुभगं जज्ञानं महित्वा जातं शिशुं नावर्धयँस्तास्सततं सुखमभ्यारुस्तथा त्वमपि प्रयतस्व ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अवर्धयन्) वर्धयन्तु (सुभगम्) शोभनैश्वर्य्यम् (सप्त) सप्तसंख्याकाः (यह्वी:) महत्यः स्त्रियः (श्वेतम्) श्वेतवर्णम् (जज्ञानम्) जनकम् (अरुषम्) अश्वम्। अरुष इति अश्वनाम। निघं०१। १४। (महित्वा) पूजयित्वा (शिशुम्) बालकम् (न) इव (जातम्) उत्पन्नम् (अभि) (आरुः) प्राप्नुवन्तु (अश्वाः) विद्याप्राप्तिशीलाः (देवासः) विद्वांसः (अग्निम्) (जनिमन्) प्रशस्ता जनिर्जन्म विद्यते यस्य तत्सम्बुद्धौ (वपुष्यन्) आत्मनो वपुरूपमिच्छन्। वपुरिति रूपनाम। निघं० ३। ७ ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सप्त स्त्रिय एकं पुत्रं वर्धयन्ति तथा येऽग्निविद्यां विदित्वैश्वर्य्यमुन्नयन्ते ते महिमानमाप्नुवन्ति ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशा सात स्त्रिया एका पुत्राला वाढवितात, तसे जे अग्निविद्या जाणून ऐश्वर्य वाढवितात त्यांचा महिमा वाढतो. ॥ ४ ॥