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इळा॑मग्ने पुरु॒दंसं॑ स॒निं गोः श॑श्वत्त॒मं हव॑मानाय साध। स्यान्नः॑ सू॒नुस्तन॑यो वि॒जावाग्ने॒ सा ते॑ सुम॒तिर्भू॑त्व॒स्मे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

iḻām agne purudaṁsaṁ saniṁ goḥ śaśvattamaṁ havamānāya sādha | syān naḥ sūnus tanayo vijāvāgne sā te sumatir bhūtv asme ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इळा॑म्। अ॒ग्ने॒। पु॒रु॒ऽदंस॑म्। स॒निम्। गोः। श॒श्व॒त्ऽत॒मम्। हव॑मानाय। सा॒ध॒। स्यात्। नः॒। सू॒नुः। तन॑यः। वि॒जाऽवा॑। अ॒ग्ने॒। सा। ते॒। सु॒ऽम॒तिः। भू॒तु॒। अ॒स्मे इति॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:1» मन्त्र:23 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:16» मन्त्र:8 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:23


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वान् ! (गोः) वाणी का (शश्वत्तमम्) अनादि भूत शब्दार्थ सम्बन्ध (हवमानाय) आनन्द के लिये (पुरुदंसम्) जिससे बहुत कर्म बनते हैं (सनिम्) अलग-अलग किई हुई (इळाम्) स्तुति करनेवाली वाणी को आप (साध) सिद्ध कीजिये। हे (अग्ने) विद्वान् ! जो (ते) तुम्हारी (सुमतिः) उत्तम बुद्धि होती है (सा) वह (अस्मे) हम लोगों के लिये (भूतु) हो जिसमे (नः) हमारे (विजावा) विशेष करके उत्पन्न भया हो ऐसा (तनयः) विस्तीर्ण बुद्धिवाला (सूनुः) पुत्र (स्यात्) हो ॥२३॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों की यही योग्यता है कि सब कुमार और कुमारियों को पण्डित पण्डिता बनावें, जिससे सब विद्या के फल को प्राप्त होकर सुमति हों ॥२३॥ इस सूक्त में विद्वान् स्त्री पुरुष और विद्या जन्म की प्रशंसा करने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्तार्थ के साथ संगति है, यह जानना चाहिये ॥ यह तीसरे मण्डल में प्रथम सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे अग्ने गोः शश्वत्तमं हवमानाय पुरुदंसं सनिमिळां त्वं साध। हे अग्ने या ते सुमतिर्भवति साऽस्मे भूतु यया नो विजावा तनयः सूनुः स्यात् ॥२३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इळाम्) स्तुत्यां वाचम् (अग्ने) विद्वन् (पुरुदंसम्) पुरूणि दंसांसि कर्माणि भवन्ति यस्यास्ताम् (सनिम्) विभक्ताम् (गोः) वाचः (शश्वत्तमम्) अनादिभूतं शब्दार्थसम्बन्धम् (हवमानाय) आनन्दाय (साध) साध्नुहि। अत्र विकरणव्यत्ययेन शप्। (स्यात्) (नः) अस्माकम् (सूनुः) पुत्रः (तनयः) विस्तीर्णबुद्धिः (विजावा) विशेषण प्रादुर्भूतः (अग्ने) विद्वन् (सा) (ते) (सुमतिः) उत्तमा प्रज्ञा (भूतु) भवतु (अस्मे) अस्मभ्यम् ॥२३॥
भावार्थभाषाः - विदुषामियमेव योग्यतास्ति सर्वान्कुमारान् कुमारीश्च विदुषीः संपादयेत् यतः सर्वे विद्यायाः फलं प्राप्य सुमतयः स्युरिति ॥२३॥ अत्र विद्वत्स्त्रीपुरुषविद्याजन्मप्रशंसाकरणादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति तृतीयमण्डले प्रथमं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वानांनी सर्व कुमार व कुमारींना पंडित व पंडिता बनवावे. ज्यामुळे सर्व विद्येचे फळ मिळून सुमती प्राप्त व्हावी. ॥ २३ ॥