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ए॒ता ते॑ अग्ने॒ जनि॑मा॒ सना॑नि॒ प्र पू॒र्व्याय॒ नूत॑नानि वोचम्। म॒हान्ति॒ वृष्णे॒ सव॑ना कृ॒तेमा जन्म॑ञ्जन्म॒न् निहि॑तो जा॒तवे॑दाः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

etā te agne janimā sanāni pra pūrvyāya nūtanāni vocam | mahānti vṛṣṇe savanā kṛtemā janmañ-janman nihito jātavedāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒ता। ते॒। अ॒ग्ने॒। जनि॑म। सना॑नि। प्र। पू॒र्व्याय॑। नूत॑नानि। वो॒च॒म्। म॒हान्ति॑। वृष्णे॑। सव॑ना। कृ॒ता। इ॒मा। जन्म॑न्ऽजन्मन्। निऽहि॑तः। जा॒तऽवे॑दाः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:1» मन्त्र:20 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:16» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:20


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वान् ! (ते) आपके (एता) इन (जनिम) जन्मों को जो कि (सनानि) कर्मों से संसेवित वा (नूतनानि) नवीन (महान्ति) बड़े-बड़े (सवना) ऐश्वर्य्यसाधक कर्म्म (जन्मन् जन्मन्) जन्म-जन्म में (कृता) किए हुए तथा (इमा) इन ऐश्वर्य्यसाधक कर्म्मों को (पूर्व्याय) पूर्वजों से किए हुए (वृष्णे) बल के लिये (प्र, वोचम्) कहूँ उनको (निहितः) अच्छे प्रकार स्थित (जातवेदाः) जो उत्पन्न हुए पदार्थों में विद्यमान आप सुनो ॥२०॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो कर्म जीवों को करने योग्य, उनसे किये जाते और किये जायेंगे, वे सब सुख-दुःख मिश्रित फल भोगनेवाले होते हैं ॥२०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे अग्ने ! त एता जनिम सनानि नूतनानि महान्ति सवना जन्मन् जन्मन् कृतेमा सवना कर्माणि पूर्व्याय वृष्णे प्रवोचं तानि निहितो जातवेदास्त्वं शृणु ॥२०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एता) एतानि (ते) तव (अग्ने) विद्वन् (जनिम) जन्मानि। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सनानि) कर्मभिः संभक्तानि (प्र) (पूर्व्याय) पूर्वैः कृताय (नूतनानि) नवीनानि (वोचम्) वदेयम् (महान्ति) (वृष्णे) बलाय (सवना) ऐश्वर्य्यसाधनानि (कृता) कृतानि (इमा) इमानि (जन्मञ्जन्मन्) जन्मनि जन्मनि (निहितः) संस्थितः (जातवेदाः) यो जातेषु पदार्थेषु विद्यते ॥२०॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यानि कर्माणि जीवैरनुष्ठेयानि क्रियन्ते करिष्यन्ते च तानि सर्वाणि सुखदुःखमिश्रफलानि भोक्तव्यानि भवन्ति ॥२०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जीव जी कर्मे करतात किंवा केली गेलेली आहेत व भविष्यात जी केली जातील ती सर्व कर्मे सुख-दुःखमिश्रित फळांचा भोग देणारी असतात. ॥ २० ॥