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य उ॑ श्रि॒या दमे॒ष्वा दो॒षोषसि॑ प्रश॒स्यते॑। यस्य॑ व्र॒तं न मीय॑ते॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ya u śriyā dameṣv ā doṣoṣasi praśasyate | yasya vrataṁ na mīyate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। ऊँ॒ इति॑। श्रि॒या। दमे॑षु। आ। दो॒षा। उ॒षसि॑। प्र॒ऽश॒स्यते॑। यस्य॑। व्र॒तम्। न। मीय॑ते॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:8» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:29» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् ! आप (यः) जो (दमेषु) घरों में (दोषा) वा रात्रि और (उषसि) दिन में (श्रिया) शोभा से (आ,प्रशस्यते) अच्छे प्रकार प्रशंसा को प्राप्त किया जाता और (यस्य) जिसका (व्रतम्,उ) शील (न) न (मीयते) नष्ट होता है, उसके समान हूजिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अग्नि का शील और स्वरूप अनादि अविनाशी वर्त्तमान है, वैसे ईश्वर, जीव और आकाश आदि पदार्थों का शील और स्वरूप नित्य वर्त्तमान है ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वँस्त्वं यो दमेषु दोषोषसि श्रियाऽऽप्रशस्यते यस्य व्रतमु न मीयते तद्वद्भव ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (उ) (श्रिया) शोभया (दमेषु) गृहेषु (आ) (दोषा) रात्रौ (उषसि) दिने (प्रशस्यते) प्रशस्तो जायते (यस्य) (व्रतम्) शीलम् (न) (मीयते) हिंस्यते ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽग्नेः शीलं स्वरूपमनाद्यविनाशि वर्त्तते तथा सर्वेषामीश्वरजीवाकाशादीनां पदार्थानां नित्ये वर्त्तेते ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा अग्नीचा स्वभाव, स्वरूप, अनादि, अविनाशी आहे तसा ईश्वर जीव व आकाश इत्यादी पदार्थांचा स्वभाव व स्वरूप नित्य आहे. ॥ ३ ॥