वा॒ज॒यन्नि॑व॒ नू रथा॒न्योगाँ॑ अ॒ग्नेरुप॑ स्तुहि। य॒शस्त॑मस्य मी॒ळ्हुषः॑॥
vājayann iva nū rathān yogām̐ agner upa stuhi | yaśastamasya mīḻhuṣaḥ ||
वा॒ज॒यन्ऽइ॑व। नु। रथा॑न्। योगा॑न्। अ॒ग्नेः। उप॑। स्तु॒हि॒। य॒शःऽत॑मस्य। मी॒ळ्हुषः॑॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब छः चावाले आठवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में अग्नि विषय का वर्णन करते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथाग्निविषयमाह।
हे विद्वन् वाजयन्निव त्वं मीढुषो यशस्तमस्याऽग्नेर्योगान् रथाँश्च नूपस्तुहि ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात अग्नी व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.