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श्रेष्ठं॑ यविष्ठ भार॒ताग्ने॑ द्यु॒मन्त॒मा भ॑र। वसो॑ पुरु॒स्पृहं॑ र॒यिम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śreṣṭhaṁ yaviṣṭha bhāratāgne dyumantam ā bhara | vaso puruspṛhaṁ rayim ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

श्रेष्ठ॑म्। य॒वि॒ष्ठ॒। भा॒र॒त॒। अग्ने॑। द्यु॒ऽमन्त॑म्। आ। भ॒र॒। वसो॒ इति॑। पु॒रु॒ऽस्पृह॑म्। र॒यिम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:7» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:28» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब छः चावाले सातवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों के गुणों का वर्णन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वसो) सुखों में वास कराने और (भारत) सब विद्या विषयों को धारण करनेवाले (यविष्ठ) अतीव युवावस्था युक्त (अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशमान विद्वान् ! आप (श्रेष्ठम्) अत्यन्त कल्याण करनेवाली (द्युमन्तम्) बहुत प्रकाशयुक्त (पुरुस्पृहम्) बहुतों को चाहने योग्य (रयिम्) लक्ष्मी को (आ, भर) अच्छे प्रकार धारण कीजिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो उत्तम धन लाभ के लिये बहुत यत्न करते हैं, वे धनाढ्य होते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्गुणानाह।

अन्वय:

हे वसो भारत यविष्ठाऽग्ने त्वं श्रेष्ठ द्युमन्तं पुरुस्पृहं रयिमा भर ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (श्रेष्ठम्) अतिशयेन श्रेयस्करम् (यविष्ठ) अतिशयेन युवन् (भारत) धारक (अग्ने) पावकवद्विद्वन् (द्युमन्तम्) बहुप्रकाशयुक्तम् (आ) समन्तात् (भर) धर (वसो) सुखेषु वासयितः (पुरुस्पृहम्) बहुभिस्स्पर्हणीयम् (रयिम्) श्रियम् ॥१॥
भावार्थभाषाः - य उत्तमधनलाभाय बहु प्रयतन्ते ते धनाढ्या जायन्ते ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात विद्वान व अग्नीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

भावार्थभाषाः - जे उत्तम धनाचा लाभ व्हावा यासाठी प्रयत्न करतात, ते धनाढ्य होतात. ॥ १ ॥