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अ॒या ते॑ अग्ने विधे॒मोर्जो॑ नपा॒दश्व॑मिष्टे। ए॒ना सू॒क्तेन॑ सुजात॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayā te agne vidhemorjo napād aśvamiṣṭe | enā sūktena sujāta ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒या। ते॒। अ॒ग्ने॒। वि॒धे॒म॒। ऊर्जः॑। न॒पा॒त्। अश्व॑म्ऽइष्टे। ए॒ना। सु॒ऽउ॒क्तेन॑। सु॒ऽजा॒त॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:6» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:27» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वानों के गुणों को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सुजात) शोभन गुणों में प्रसिद्ध (अश्वमिष्टे) घोड़े के इच्छा करने और (ऊर्जः) बल को (नपात्) न पतन करानेवाले (अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशमान (ते) आपके सम्बन्ध में जो (अग्निः) अग्नि है उसकी (अया) इस समिधा से और (सूक्तेन) उत्तमता से कहे हुए सूक्त से हम लोग (विधेम) सेवन करें ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो विद्या और साधनों से अग्नि का युक्ति के साथ अच्छे प्रकार प्रयोग करते हैं, वे अग्नि के पराक्रम से अपने कामों को सिद्ध कर सकते हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्गुणानाह।

अन्वय:

हे सुजाताऽश्वमिष्टे ऊर्जो नपादग्ने ते तवाग्नेरया समिधैना सूक्तेन च वयं विधेम ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अया) अनया समिधा (ते) तव (अग्ने) पावक इव प्रकाशमान (विधेम) परिचरेम (ऊर्जः) पराक्रमस्य (नपात्) यो न पातयति तत्सम्बुद्धौ (अश्वमिष्टे) योऽश्वमिच्छति तत्सम्बुद्धौ। अत्र बहुलं छन्दसीति मुमागमः। (एना) एनेन (सूक्तेन) सुष्ठूक्तेन (सुजात) शोभनेषु प्रसिद्ध ॥२॥
भावार्थभाषाः - ये विद्यया साधनैरग्निं युक्त्या संप्रयुञ्जते ते वह्नेः पराक्रमेण स्वकार्याणि साद्धुं शक्नुवन्ति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्या व साधनांनी अग्नीचा युक्तीने चांगल्या प्रकारे प्रयोग करतात ते अग्नीच्या सामर्थ्याने आपले कार्य सिद्ध करतात. ॥ २ ॥