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द॒ध॒न्वे वा॒ यदी॒मनु॒ वोच॒द्ब्रह्मा॑णि॒ वेरु॒ तत्। परि॒ विश्वा॑नि॒ काव्या॑ ने॒मिश्च॒क्रमि॑वाभवत्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dadhanve vā yad īm anu vocad brahmāṇi ver u tat | pari viśvāni kāvyā nemiś cakram ivābhavat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

द॒ध॒न्वे। वा॒। यत्। ई॒म्। अनु॑। वोच॑त्। ब्रह्मा॑णि। वेः। ऊँ॒ इति॑। तत्। परि॑। विश्वा॑नि। काव्या॑। ने॒मिः। च॒क्रम्ऽइ॑व। अ॒भ॒व॒त्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:5» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:26» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर ईश्वर के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - सूर्य (यत्) जो (ईम्) जल को (दधन्वे) धारण करता है (वा) वा ब्रह्मवेत्ता (ब्रह्माणि) बड़े-बड़े ब्रह्मविषयों का (अनुवोचत्) बार-बार उपदेश करता है (तत्) उस सबको जिस कारण ईश्वर (वेः, उ) जानता ही है और (विश्वानि) समस्त (काव्या) उत्तम बुद्धिमानों के कर्मों को (परि) सब ओर से जानता ही है, इस कारण जैसे (नेमिः) धुरी (चक्रम्) पहिये को वर्त्तानेवाली होती, वैसे इस संसार के व्यवहारों को वर्त्तानेवाला विद्वान् (अभवत्) होता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। सूर्य जल को धारण करता है वा विद्वान् जन ब्रह्मविषयादि को कहते हैं, उस सबको व्यापक परमेश्वर साङ्गोपाङ्ग जानता है ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरीश्वरविषयमाह।

अन्वय:

सूर्यो यदीं दधन्वे ब्रह्मविद्वा ब्रह्माण्यनुवोचत्तत्सर्वं यदीश्वरो वेरु जानाति विश्वानि काव्या परि वेरु ततो नेमिश्चक्रमिव विद्वानभवत् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (दधन्वे) धरति (वा) (यत्) (ईम्) जलम् (अनु) (वोचत्) पुनरुपदिशेत् (ब्रह्माणि) बृहन्ति (वेः) जानाति (उ) (तत्) (परि) (सर्वतः) (विश्वानि) सर्वाणि (काव्या) कवेः क्रान्तप्रज्ञस्य कर्माणि (नेमिः) प्रापकः लयः (चक्रमिव) चक्रमिव अभवत् भवति ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। सूर्यो जलं धरति विद्वांसश्च ब्रह्मविषयादीन् वदन्ति तत्सर्वं व्यापकः परमेश्वरः साङ्गोपाङ्गं जानाति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. सूर्य जल धारण करतो किंवा विद्वान लोक ब्रह्माविषयी उपदेश करतात ते सर्व व्यापक परमेश्वर सांगोपांग जाणतो. ॥ ३ ॥