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आ॒वदं॒स्त्वं श॑कुने भ॒द्रमा व॑द तू॒ष्णीमासी॑नः सुम॒तिं चि॑किद्धि नः। यदु॒त्पत॒न्वद॑सि कर्क॒रिर्य॑था बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

āvadam̐s tvaṁ śakune bhadram ā vada tūṣṇīm āsīnaḥ sumatiṁ cikiddhi naḥ | yad utpatan vadasi karkarir yathā bṛhad vadema vidathe suvīrāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ॒ऽवद॑न्। त्वम्। श॒कु॒ने॒। भ॒द्रम्। आ। व॒द॒। तू॒ष्णीम्। आसी॑नः। सु॒ऽम॒तिम्। चि॒कि॒द्धि॒। नः॒। यत्। उ॒त्ऽपत॑न्। वद॑सि। क॒र्क॒रिः। य॒था॒। बृ॒हत्। व॒दे॒म। वि॒दथे॑। सु॒ऽवीराः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:43» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:12» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शकुने) शक्तिमान् पक्षी के समान वर्त्तमान ! तू (आवदन्) सब ओर से उपदेश करता हुआ (भद्रम्) कल्याण करने योग्य प्रस्ताव का (आवद) अच्छे प्रकार उपदेश कर (तूष्णीम्) मौन को आलम्बन कर (आसीनः) बैठे हुए योग का अभ्यास करता हुआ (नः) हम लोगों की (सुमतिम्) शुभ बुद्धि (चिकिद्धि) समझ (उत्पतन्) ऊपर को उड़ते के समान जिस (भद्रम्) कल्याण करने योग्य काम को (यथा) जैसे (कर्करिः) निरन्तर करनेवाला हो वैसे (वदसि) कहते हो इसी से (सुवीराः) सुन्दर वीरोंवाले हम लोग (विदथे) संग्राम में (बृहत्) बहुत कुछ (वदेम) कहें ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विद्याओं को सुनकर मनन करते हुए पढ़ाते और सत्य को जानकर औरों को उपदेश करते हैं, वे सबके कल्याण करनेवाले होते हैं ॥३॥ इस सूक्त में उपदेशकों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह तेतालीसवाँ सूक्त बारहवाँ वर्ग चौथा अनुवाक और दूसरा मण्डल समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे शकुने त्वमावदन् सन् भद्रमावद तूष्णीमासीनो योगाभ्यासं कुर्वन् नः सुमतिं चिकिद्धि उत्पतन्निव यद्भद्रं यथा कर्करिस्तथा वदसि अनेनैव सुवीराः सन्तो वयं विदथे बृहद्वदेम ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आवदन्) समन्तादुपदिशन् (त्वम्) (शकुने) शक्तिमत्पक्षिवद्वर्त्तमान (भद्रम्) भन्दनीयं वचः (आ) (वद) (तूष्णीम्) मौनमालम्ब्य (आसीनः) उपविष्टस्सन् (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (चिकिद्धि) ज्ञापय (नः) अस्मान् (यत्) (उत्पतन्) ऊर्ध्वमुड्डीयमान इव (वदसि) (कर्करिः) भृशं कुर्वन् (यथा) (बृहत्) (वदेम) (विदथे) (सुवीराः) ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विद्याः श्रुत्वा मन्वाना अध्यापयन्तस्सन्तः सत्यं विज्ञायाऽन्यानुपदिशन्ति ते सर्वेषां कल्याणकरा भवन्तीति ॥३॥ अत्रोपदेशकगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिर्वेद्या ॥ इति त्रिचत्वारिंशत्तमं सूक्तं द्वादशो वर्गश्चतुर्थोऽनुवाको द्वितीयं मण्डलं च समाप्तम् ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्येचे श्रवण करून मनन करून शिकवितात व सत्य जाणून इतरांना उपदेश करतात, ते सर्वांचे कल्याणकर्ते असतात. ॥ ३ ॥