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अव॑ क्रन्द दक्षिण॒तो गृ॒हाणां॑ सुम॒ङ्गलो॑ भद्रवा॒दी श॑कुन्ते। मा नः॑ स्ते॒न ई॑शत॒ माघशं॑सो बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ava kranda dakṣiṇato gṛhāṇāṁ sumaṅgalo bhadravādī śakunte | mā naḥ stena īśata māghaśaṁso bṛhad vadema vidathe suvīrāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अव॑। क्र॒न्द॒। द॒क्षि॒ण॒तः। गृ॒हाणा॑म्। सु॒ऽम॒ङ्गलः॑। भ॒द्र॒ऽवा॒दी। श॒कु॒न्ते॒। मा। नः॒। स्ते॒नः। ई॒श॒त॒। मा। अ॒घऽशं॑सः। बृ॒हत्। व॒दे॒म॒। वि॒दथे॑। सु॒ऽवीराः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:42» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:11» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (शकुन्ते) शक्तिमान् (सुमङ्गलः) सुन्दर मङ्गलयुक्त (भद्रवादी) कल्याण के कहनेवाले होते हुए आप (गृहाणाम्) उत्तम घरों के (दक्षिणतः) दाहिनी ओर से (अव,क्रन्द) शब्द करो अर्थात् उपदेश करो जिससे (स्तेनः) चोर (नः) हम लोगों को कष्ट देने को (मा) मत (ईशत) समर्थ हो (अघशंसः) पाप की प्रशंसा करता वह डाकू हम लोगों को दुष्टता देने को (मा) मत समर्थ हो जिससे (सुवीराः) सुन्दर वीरोंवाले हम लोग (विदथे) संग्राम में (बृहत्) बहुत कुछ (वदेम) कहें ॥३॥
भावार्थभाषाः - शुद्धाचरणों को करनेवाले सत्यवादी महात्मा जहाँ उपदेश करते हैं, वहाँ चोर आदि दुष्ट नष्ट होकर सबको बहुत सुख बढ़ता है ॥३॥ इस सूक्त में उपदेशक के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह बयालीसवाँ सूक्त और ग्यारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे शकुन्ते सुमङ्गलो भद्रवादी संस्त्वं गृहाणां दक्षिणतोऽवक्रन्द यतः स्तेनो नो मेशत अघशंसो नो मेशत यतस्सुवीरा वयं विदथे बृहद्वदेम ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अव) (क्रन्द) शब्दं कुरु (दक्षिणतः) दक्षिणपार्श्वे (गृहाणाम्) प्रसादानाम् (सुमङ्गलः) (भद्रवादी) (शकुन्ते) शक्तिमन् (मा) (नः) अस्मान् (स्तेनः) चोरः (ईशत) समर्थो भवेत्। अत्र विकरणव्यत्ययेन शः (मा) निषेधे (अघशंसः) योऽघं पापं शंसति स दस्युः (बृहत्) (वदेम) (विदथे) (सुवीराः) ॥३॥
भावार्थभाषाः - शुद्धाचारास्सत्यवादिनो महात्मानो यत्रोपदिशन्ति तत्र चोरादयो दुष्टा नष्टा भूत्वा सर्वेषाम्महत्सुखं वर्द्धते ॥३॥ अत्रोपदेशकगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिर्वेद्या ॥ इति द्विचत्वारिंशत्तमं सूक्तमेकादशो वर्गश्च समाप्तः॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - शुद्ध आचरण करणारे सत्यवादी महात्मा जेथे उपदेश करतात तेथे चोर इत्यादी दुष्ट लोक नष्ट होऊन सर्वांचे सुख वाढते. ॥ ३ ॥