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अ॒यं वां॑ मित्रावरुणा सु॒तः सोम॑ ऋतावृधा। ममेदि॒ह श्रु॑तं॒ हव॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayaṁ vām mitrāvaruṇā sutaḥ soma ṛtāvṛdhā | mamed iha śrutaṁ havam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒यम्। वा॒म्। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। सु॒तः। सोमः॑। ऋ॒त॒ऽवृ॒धा॒। मम॑। इत्। इ॒ह। श्रु॒त॒म्। हव॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:41» मन्त्र:4 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:7» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (तावृधा) सत्य से बड़े हुए (मित्रावरुणा) प्राण और उदान के समान वर्त्तमान अध्यापको ! जो (अयम्) यह (वाम्) तुम दोनों से (सोमः) ओषधियों का रस (सुतः) उत्पन्न हुआ उसको पीके (इत्) ही (इह) यहाँ (मम) मेरे (हवम्) आह्वान को (श्रुतम्) सुनिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - जैसे वायु सबसे रस को ग्रहण कर वर्षाते हैं, वैसे ही सत्य विद्याओं को सुनकर सबके लिये सुख देना चाहिये ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे तावृधा मित्रावरुणा योऽयं वा सोमः सुतस्तत्पीत्वेदिह मम हवं श्रुतम् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) (वाम्) युवाभ्याम् (मित्रावरुणा) प्राणोदानवद्वर्त्तमानौ (सुतः) निष्पादितः (सोमः) (तावृधा) सत्येन वृद्धौ (मम) (इत्) (इह) (श्रुतम्) (हवम्) ॥४॥
भावार्थभाषाः - यथा वायवः सर्वस्माद्रसं गृहीत्वा वर्षयन्ति तथैव सत्या विद्याः श्रुत्वा सर्वेभ्यः सुखं देयम् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे वायू सर्वांकडून रस ग्रहण करून वृष्टी करतात तसेच सत्य विद्येचे श्रवण करून सर्वांना सुख दिले पाहिजे. ॥ ४ ॥