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प्रेतां॑ य॒ज्ञस्य॑ शं॒भुवा॑ यु॒वामिदा वृ॑णीमहे। अ॒ग्निं च॑ हव्य॒वाह॑नम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pretāṁ yajñasya śambhuvā yuvām id ā vṛṇīmahe | agniṁ ca havyavāhanam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। इ॒ता॒म्। य॒ज्ञस्य॑। श॒म्ऽभुवा॑। यु॒वाम्। इत्। आ। वृ॒णी॒म॒हे॒। अ॒ग्निम्। च॒। ह॒व्य॒ऽवाह॑नम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:41» मन्त्र:19 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:10» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:19


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्री पुरुषो ! जो (शम्भुवा) सुख की सम्भावना करानेवाले (युवाम्) दोनों स्त्री-पुरुष (यज्ञस्य) यज्ञ की विद्याओं को (प्रेताम्) प्राप्त होते (च) और (हव्यवाहनम्) हव्य द्रव्य को पहुँचानेवाले (अग्निम्) अग्नि को प्राप्त होते (इत्) उन्हीं को हम लोग (आ,वृणीमहे) अच्छे प्रकार स्वीकार करते हैं ॥१९॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्यों को पुत्रों के अध्यापकों और पुत्री की अध्यापिकाओं को निरन्तर नियुक्त करना चाहिये, जिससे स्त्री-पुरुषों में पूर्ण विद्याओं का प्रचार हो ॥१९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे स्त्रीपुरुषौ यौ शम्भुवा युवां यज्ञस्य विद्याः प्रेतां हव्यवाहनमग्निं च ताविदेव वयमा वृणीमहे ॥१९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (इताम्) प्राप्नुतः (यज्ञस्य) अध्यापनाध्ययनस्य (शंभुवा) यौ शं सुखं सम्भावयतस्तौ (युवाम्) द्वौ स्त्रीपुरुषौ (इत्) एव (आ) (वृणीमहे) स्वीकुर्महे (अग्निम्) पावकम् (च) (हव्यवाहनम्) यो हव्यं वहति तम् ॥१९॥
भावार्थभाषाः - सर्वैर्मनुष्यैः पुत्राध्यापकान् पुरुषान् कन्याध्यापिकाः स्त्रियश्च सततमध्यापनाय नियोजनीया यतस्स्त्रीपुरुषेषु पूर्णविद्याप्रचारः स्यात् ॥१९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व माणसांनी पुत्रांसाठी अध्यापक व पुत्रींसाठी अध्यापिकांना नियुक्त केले पाहिजे. ज्यामुळे स्त्री-पुरुषांमध्ये पूर्ण विद्यांचा प्रचार व्हावा. ॥ १९ ॥