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विश्वा॑न्य॒न्यो भुव॑ना ज॒जान॒ विश्व॑म॒न्यो अ॑भि॒चक्षा॑ण एति। सोमा॑पूषणा॒वव॑तं॒ धियं॑ मे यु॒वाभ्यां॒ विश्वाः॒ पृत॑ना जयेम॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśvāny anyo bhuvanā jajāna viśvam anyo abhicakṣāṇa eti | somāpūṣaṇāv avataṁ dhiyam me yuvābhyāṁ viśvāḥ pṛtanā jayema ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विश्वा॑नि। अ॒न्यः। भु॒व॒ना। ज॒जान॑। विश्व॑म्। अ॒न्यः। अ॒भि॒ऽचक्षा॑णः। ए॒ति॒। सोमा॑पूषणौ। अव॑तम्। धिय॑म्। मे॒। यु॒वाभ्या॑म्। विश्वाः॑। पृत॑नाः। ज॒ये॒म॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:40» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:6» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वानों के गुणों को कहते हैं ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अध्यापक और उपदेशको ! जो (अन्यः) भिन्न भाग (विश्वानि) समस्त (भुवना) लोकों में प्रसिद्ध पदार्थों को (जजान) उत्पन्न करता जो (अन्यः) और (अभिचक्षाणः) प्रकट वाणी का विषय (विश्वम्) संसार को (एति) प्राप्त होता उन दोनों (सोमापूषणौ) शान्ति और पुष्टि गुणवाले वायु का उपदेश देकर (मे) मेरी (धियम्) बुद्धि की तुम दोनों (अवतम्) रक्षा करो जिससे (युवाभ्याम्) तुम दोनों के साथ हम लोग (विश्वाः) समस्त (पृतनाः) मनुष्यों को (जयेम) उत्कर्ष दें ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो वायु सब लोकों को धरता और जो शब्द प्रयोग वा श्रवण का निमित्त है, उसके विज्ञान कराने से सब मनुष्यों की उन्नति करनी चाहिये ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्गुणानाह।

अन्वय:

हे अध्यापकोपदेशकौ योऽन्यो विश्वानि भुवना जजान योऽन्योऽभिचक्षाणो विश्वमेति तौ सोमापूषणा उपदिश्य मे धियं युवामवतं यतो युवाभ्यां सह वयं विश्वाः पृतना जयेम ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वानि) सर्वाणि (अन्यः) भिन्नो भागः (भुवना) भुवनानि लोकजातानि (जजान) जज्ञे प्रादुर्भावयति। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम्। (विश्वम्) (अन्यः) (अभिचक्षाणः) अभिव्यक्तवाग्विषयः (एति) गच्छति (सोमापूषणौ) (अवतम्) रक्षतम् (धियम्) प्रज्ञाम् (मे) मम (युवाभ्याम्) (विश्वाः) सर्वान् (पृतनाः) मनुष्यान् (जयेम) उत्कर्षयेम ॥५॥
भावार्थभाषाः - यो वायुः सर्वाँल्लोकान् धरति यश्च शब्दप्रयोगश्रवणनिमित्तोऽस्ति तद्विज्ञापनेन सर्वेषां मनुष्याणामुन्नतिः कार्य्या ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो वायू सर्व गोलांना धारण करतो व जो शब्दप्रयोग किंवा श्रवणाचे निमित्त आहे, हे जाणून सर्व माणसांनी उन्नती केली पाहिजे. ॥ ५ ॥