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ओष्ठा॑विव॒ मध्वा॒स्ने वद॑न्ता॒ स्तना॑विव पिप्यतं जी॒वसे॑ नः। नासे॑व नस्त॒न्वो॑ रक्षि॒तारा॒ कर्णा॑विव सु॒श्रुता॑ भूतम॒स्मे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

oṣṭhāv iva madhv āsne vadantā stanāv iva pipyataṁ jīvase naḥ | nāseva nas tanvo rakṣitārā karṇāv iva suśrutā bhūtam asme ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ओष्ठौ॑ऽइव। मधु॑। आ॒स्ने। वद॑न्ता। स्तनौ॑ऽइव। पि॒प्य॒त॒म्। जी॒वसे॑। नः॒। नासा॑ऽइव। नः॒। त॒न्वः॑। र॒क्षि॒तारा॑। कर्णौ॑ऽइव। सु॒ऽश्रुता॑। भू॒त॒म्। अ॒स्मे इति॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:39» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:5» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो! तुम जो (आस्ने) मुख के लिए (मधु) मधुर रस को (ओष्ठाविव) ओष्ठों के समान (वदन्ता) कहते हुए (जीवसे) जीवने को (स्तनाविव) स्तनों के समान (नः) हमारे लिए (पिप्यतम्) बढ़ाते अर्थात् जैसे स्तनों में उत्पन्न हुए दुग्ध से जीवन बढ़ता है, वैसे बढ़ाते (नासेव) और नासिका के समान (नः) हमारे (तन्वः) शरीर की (रक्षितारा) रक्षा करनेवाले वा (अस्मे) हम लोगों के लिये (कर्णाविव) कर्णों के समान (सुश्रुता) जिनसे सुन्दर श्रवण होता है ऐसे (भूतम्) होते हैं उन वायु और अग्नि को विदित कराइये ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो अध्यापक जिह्वा से रस के समान, स्तनों से दुग्ध के समान, नासिका से गन्ध के तुल्य, कान से शब्द के समान समस्त विद्याओं को प्रत्यक्ष कराते हैं, वे जगत्पूज्य होते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वांसो यूयं यावास्ने मध्वोष्ठाविव वदन्ता जीवसे स्तनाविव नः पिप्यतं नासेव नस्तन्वो रक्षितारा अस्मे कर्णाविव सुश्रुता भूतं तावग्निवायू विदितौ कारयत ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ओष्ठाविव) (मधु) (आस्ने) आस्याय मुखाय (वदन्ता) ब्रुवन्तौ (स्तनाविव) (पिप्यतम्) प्याययतो वर्द्धयतः (जीवसे) जीवितुम् (नः) अस्मभ्यम् (नासेव) नासिके इव (नः) अस्माकम् (तन्वः) शरीरस्य (रक्षितारा) रक्षकौ (कर्णाविव) (सुश्रुता) शोभनं श्रुतं याभ्यान्तौ (भूतम्) भवतः (अस्मे) अस्मभ्यम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। येऽध्यापका जिह्वया रसमिव स्तनेन दुग्धमिव नासिकया गन्धमिव श्रोत्रेण शब्दमिव सर्वा विद्याः प्रत्यक्षीकारयन्ति ते जगत्पूज्या भवन्ति ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे अध्यापक जिह्वेने रसाप्रमाणे, स्तनाने दुधाप्रमाणे, नासिकेद्वारे गंधाप्रमाणे, कानाने शब्दाप्रमाणे संपूर्ण विद्यांना प्रत्यक्ष करवितात ते जगात पूज्य ठरतात. ॥ ६ ॥