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न यस्येन्द्रो॒ वरु॑णो॒ न मि॒त्रो व्र॒तम॑र्य॒मा न मि॒नन्ति॑ रु॒द्रः। नारा॑तय॒स्तमि॒दं स्व॒स्ति हु॒वे दे॒वं स॑वि॒तारं॒ नमो॑भिः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

na yasyendro varuṇo na mitro vratam aryamā na minanti rudraḥ | nārātayas tam idaṁ svasti huve devaṁ savitāraṁ namobhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न। यस्य॑। इन्द्रः॑। वरु॑णः। न। मि॒त्रः। व्र॒तम्। अ॒र्य॒मा। न। मि॒नन्ति॑। रु॒द्रः। न। अरा॑तयः। तम्। इ॒दम्। स्व॒स्ति। हु॒वे। दे॒वम्। स॒वि॒तार॑म्। नमः॑ऽभिः॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:38» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यस्य) जिस जगदीश्वर के (व्रतम्) नियम को (न) न (इन्द्रः) सूर्य्य और बिजली (न) न (वरुणः) जल (न) न (मित्रः) वायुः (न) न (अर्य्यमा) द्वितीय प्रकार का नियन्ता धारक वायु (न) न (रुद्रः) जीव (न) न (अरातयः) शत्रुजन (मिनन्ति) नष्ट करते हैं (तम्) उस (इदम्) इस (स्वस्ति) सुखरूप (सवितारम्) समस्त जगत् के उत्पन्न करनेवाले (देवम्) दाता परमात्मा को (नमोभिः) सत्कर्मों से जैसे मैं (हुवे) स्तुति करुँ वैसे तुम भी प्रशंसा करो ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस संसार में कोई पदार्थ ईश्वर के तुल्य नहीं है तो अधिक कैसे हो और कोई भी इसके नियम का उल्लङ्घन नहीं कर सकता है, इस कारण सब मनुष्यों को उसी ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना और उपासना करना चाहिये ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या यस्य व्रतं नेन्द्रो न वरुणो न मित्रो नार्यमा न रुद्रो नारातयो मिनन्ति तमिदं स्वस्ति सुखरूपं सवितारं देवं नमोभिर्यथाऽहं हुवे तथा यूयमपि प्रशंसेत ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (न) (यस्य) जगदीश्वरस्य (इन्द्रः) सूर्य्यो विद्युद्वा (वरुणः) आपः (न) (मित्रः) वायुः (व्रतम्) नियमम् (अर्य्यमा) नियन्ता धारको वायुः (न) (मिनन्ति) हिंसन्ति (रुद्रः) जीवः (न) (अरातयः) शत्रवः (तम्) (इदम्) (स्वस्ति) (हुवे) स्तौमि (देवम्) दातारम् (सवितारम्) सकलजगदुत्पादकम् (नमोभिः) सत्कर्मभिः ॥९॥
भावार्थभाषाः - इह न कश्चित्पदार्थ ईश्वरतुल्योऽस्ति कुतोऽधिको न कोऽप्यस्य नियममुल्लङ्घयितुं शक्नोति तस्मात्सर्वैर्मनुष्यैस्तस्यैवेश्वरस्य स्तुतिप्रार्थनोपासनाः कार्य्याः ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या जगात कोणताही पदार्थ ईश्वराएवढा नाही तर जास्त कसा असेल? कोणीही त्याच्या नियमाचे उल्लंघन करू शकत नाही. त्यासाठी सर्व माणसांनी त्याच ईश्वराची स्तुती, प्रार्थना व उपासना केली पाहिजे. ॥ ९ ॥