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या॒द्रा॒ध्यं१॒॑ वरु॑णो॒ योनि॒मप्य॒मनि॑शितं नि॒मिषि॒ जर्भु॑राणः। विश्वो॑ मार्ता॒ण्डो व्र॒जमा प॒शुर्गा॑त्स्थ॒शो जन्मा॑नि सवि॒ता व्याकः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yādrādhyaṁ varuṇo yonim apyam aniśitaṁ nimiṣi jarbhurāṇaḥ | viśvo mārtāṇḍo vrajam ā paśur gāt sthaśo janmāni savitā vy ākaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

या॒त्ऽरा॒ध्य॑म्। वरु॑णः। योनि॑म्। अप्य॑म्। अनि॑ऽशितम्। नि॒ऽमिषि॑। जर्भु॑राणः। विश्वः॑। मा॒र्ता॒ण्डः। व्र॒जम्। आ। प॒शुः। गा॒त्। स्थ॒ऽशः। जन्मा॑नि। स॒वि॒ता। वि। आ। अ॒क॒रित्य॑कः॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:38» मन्त्र:8 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (विश्वः) समस्त (मार्त्ताण्डः) सूर्य्यलोक में उत्पन्न और (निमिषि) निमेषादि काल व्यवहार में (जर्भुराणः) निरन्तर धारण करता हुआ (वरुणः) श्रेष्ठ जीव (व्रजम्) गोण्ड़े को (पशुः) जैसे पशु वैसे (याद्राध्यम्) जानेवालों से अच्छे प्रकार सिद्ध होने योग्य (अप्यम्) जलों में प्रसिद्ध (अनिशितम्) अतीक्ष्ण (योनिम्) कारणरूप अग्नि को (आ,गात्) प्राप्त होवे उस जीव के (स्थशः) बहुत ठहरनेवाले (जन्मानि) जन्मों को (सविता) परमात्मा (व्याकः) विविध प्रकार से करता है ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जितने इस जगत् में जीव हैं, वे अपने कर्मजन्य फल को विद्यमान शरीर में और पीछे भी प्राप्त होते हैं। जैसे पशु गोपाल से नियम में रखा हुआ प्राप्तव्य स्थान को प्राप्त होता है, वैसे जगदीश्वर जीवों से अनुष्ठित कर्मों के अनुसार सुख-दुःख और निकृष्ट-मध्यम तथा उत्तम जन्मों को देता है ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

यो विश्वो मार्त्ताण्डो निमिषि जर्भुराणो वरुणो व्रजं पशुरिव याद्राध्यमप्यमनिशितं योनिमागात् तस्य जीवस्य स्थशो जन्मानि सविता व्याकः ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (याद्राध्यम्) ये यान्ति ते यातस्तैराध्यं याद्राध्यं संसाधनीयम् (वरुणः) वरो जीवः (योनिम्) कारणं वह्निम् (अप्यम्) अप्सु भवम् (अनिशितम्) अतीक्ष्णम् (निमिषि) निमिषादि कालव्यवहारे (जर्भुराणः) भृशं धरन् (विश्वः) सर्वः (मार्त्ताण्डः) मार्त्तण्डे सूर्ये भवः। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (व्रजम्) गोष्ठानम् (आ) (पशुः) (गात्) प्राप्नुयात् (स्थशः) तिष्ठन्तीति स्थास्तानि बहूनि इति स्थशः। अत्र बह्वल्पार्थादिति शस्। (जन्मानि) (सविता) परमात्मा (वि) (आ) (अकः) करोति ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यावन्तोऽत्र जगति जीवाः सन्ति ते स्वकीयकर्मजन्यं फलं विद्यमाने शरीरे परस्ताच्च प्राप्नुवन्ति यथा पशुः गोपालेन नियतः सन् प्राप्तव्यं स्थानं प्राप्नोति तथा जगदीश्वरो जीवैरनुष्ठितकर्मानुसारेण सुखदुःखे निकृष्टमध्यमोत्तमानि जन्मानि च ददाति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. या जगात जितके जीव आहेत ते आपले कर्मजन्य फळ विद्यमान शरीरात व नंतरही भोगतात. जसा गोपाल पशूंना निश्चित स्थानी ठेवतो तसा जगदीश्वर जीवांच्या अनुष्ठित कर्मानुसार सुख-दुःख, निकृष्ट, मध्यम व उत्तम जन्म देतो. ॥ ८ ॥