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त्वया॑ हि॒तमप्य॑म॒प्सु भा॒गं धन्वान्वा मृ॑ग॒यसो॒ वि त॑स्थुः। वना॑नि॒ विभ्यो॒ नकि॑रस्य॒ तानि॑ व्र॒ता दे॒वस्य॑ सवि॒तुर्मि॑नन्ति॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvayā hitam apyam apsu bhāgaṁ dhanvānv ā mṛgayaso vi tasthuḥ | vanāni vibhyo nakir asya tāni vratā devasya savitur minanti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वया॑। हि॒तम्। अप्य॑म्। अ॒प्ऽसु। भा॒गम्। धन्व॑। अनु॑। आ। मृ॒ग॒यसः॑। वि। त॒स्थुः॒। वना॑नि। विऽभ्यः॑। नकिः॑। अ॒स्य॒। तानि॑। व्र॒ता। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। मि॒न॒न्ति॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:38» मन्त्र:7 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर ! जो (त्वया) आपके नियम के साथ वर्त्तमान (मृगयसः) मृग आदि वन्य प्राणी (अप्सु) जलों में (हितम्) स्थापित किये हुए वा (अप्यम्) प्राणों में प्रसिद्ध हुए (भागम्) सेवन करने योग्य अंश को (अनु,आ,तस्थुः) अनुकूलता से प्राप्त होते हैं तथा (विभ्यः) पक्षियों के लिये (धन्व) अन्तरिक्ष और (वनानि) वनों को आपने बनाया (तानि) उन (अस्य) इन आप (सवितुः) सकलैश्वर्य्य को प्राप्त करनेवाले (देवस्य) मनोहर ईश्वर के (व्रता) गुण-कर्म-स्वभावों को कोई भी (नकिः) नहीं (विमिनन्ति) नष्ट करते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - यदि ईश्वर भूमि आदि स्थान तथा भोग्य-पेय-चूष्य-लेह्य पदार्थों को न बनावे तो कोई भी शरीर और जीवन को धारण नहीं कर सकता, ईश्वर ने जिनके अर्थ जो नियम स्थापन किये हैं, उसके उल्लङ्घन करने को कोई समर्थ नहीं होता ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरविषयमाह।

अन्वय:

हे जगदीश्वर यत्त्वया सह वर्त्तमाना मृगयसः प्राणिनोऽप्सु हितमप्यं भागमन्वा तस्थुर्विभ्यो धन्व वनानि च त्वया निर्मितानि तानि तवाऽस्य सवितुर्देवस्य व्रता केऽपि नकिर्विमिनन्ति ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वया) (हितम्) (अप्यम्) अप्सु प्राणेषु भवम् (अप्सु) जलेषु (भागम्) भजनीयम् (धन्व) अन्तरिक्षम्। धन्वेत्यन्तरिक्षना० निघं० १। ३। (अनु) (आ) (मृगयसः) मृगादयः (वि) (तस्थुः) तिष्ठन्ति (वनानि) (विभ्यः) पक्षिभ्यः (नकिः) न (अस्य) (तानि) (व्रता) व्रतानि गुणकर्मशीलानि (देवस्य) कमनीयस्य (सवितुः) सकलैश्वर्य्यं प्रापयत ईश्वरस्य (मिनन्ति) हिंसन्ति ॥७॥
भावार्थभाषाः - यदीश्वरो भूम्यादिकं भोग्यान्पेयाञ्चूष्यान्लेह्यान्पदार्थान् न निर्मिमीत तर्हि कोऽपि शरीरं जीवनं च धर्त्तुं न शक्नुयात्। ईश्वरेण यदर्था ये नियमाः संस्थापितास्तदुल्लङ्घनं कर्त्तुं कोऽपि समर्थो न भवति ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ईश्वराने जर भूमी इत्यादी स्थान व भोज्य, पेय, चोष्य (चोखण्यायोग्य) लेह्य (चाटण्यायोग्य) पदार्थ बनविले नसते तर कुणीही शरीर धारण केले नसते. ईश्वराने ज्यांच्यासाठी नियम बनविलेले आहेत त्यांचे उल्लंघन करण्यास कोणी समर्थ होऊ शकत नाही. ॥ ७ ॥