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उपे॑मसृक्षि वाज॒युर्व॑च॒स्यां चनो॑ दधीत ना॒द्यो गिरो॑ मे। अ॒पां नपा॑दाशु॒हेमा॑ कु॒वित्स सु॒पेश॑सस्करति॒ जोषि॑ष॒द्धि॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

upem asṛkṣi vājayur vacasyāṁ cano dadhīta nādyo giro me | apāṁ napād āśuhemā kuvit sa supeśasas karati joṣiṣad dhi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उप॑। ई॒म्। अ॒सृ॒क्षि॒। वा॒ज॒ऽयुः। व॒च॒स्याम्। चनः॑। द॒धी॒त॒। ना॒द्यः। गिरः॑। मे॒। अ॒पाम्। नपा॑त्। आ॒शु॒ऽहेमा॑। कु॒वित्। सः। सु॒ऽपेश॑सः। क॒र॒ति॒। जोषि॑षत्। हि॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:35» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:22» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पन्द्रह चा वाले पैंतीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अग्नि के विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (वाजयुः) अपने को विज्ञान और अन्नादिकों की इच्छा करनेवाला (वचस्याम्) जल में हुई क्रिया का वा (उप,ईम्) समीप में जल को (असृक्षि) सिद्ध करता है और (चनः) चणकादि अन्न को (दधीत) धारण करे वा जो (अपान्नपात्) जलों के बीच न गिरनेवाला (नाद्यः) अव्यक्त शब्द करने को योग्य तथा (आशुहेमा) शीघ्र बढ़नेवाली (कुवित्) बहु प्रकार की क्रिया और (मे) मेरी (गिरः) वाणी का सम्बन्ध करनेवाला व्यवहार है (सः,हि) वही (सुपेशसः) सुन्दर रूपवालों को (करति) करे और (जोषिषत्) उन्हें सेवे ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो सूर्य जल को खींच और वर्षा कर नदियों को बहाता और अन्नों को उत्पन्न करता, जिसके खाने से प्राणियों को स्वरूपवान् करता है, वह सबको युक्ति के साथ सेवन करने योग्य है ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाऽग्निविषयमाह।

अन्वय:

यो वाजयुर्वचस्यामुपेमसृक्षि चनो दधीत योऽपांनपान्नाद्य आशुहेमा कुविन्मे गिरस्सम्बन्ध्यस्ति स हि सुपेशसस्करति जोषिषच्च ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उप) समीपे (ईम्) जलम् (असृक्षि) सृजति (वाजयुः) य आत्मनो वाजमिच्छुः (वचस्याम्) वचसि उदके भवाम् (चनः) अन्नम् (दधीत) (नाद्यः) नदितुं योग्यः (गिरः) वाण्याः (मे) मम (अपाम्) जलानाम् (नपात्) न पतति सः (आशुहेमा) सद्यो वर्द्धकः (कुवित्) बहुः। कुविदिति बहुना० निघं० ३। १। (सः) (सुपेशसः) सु-शोभनं पेशो रूपं येषान्तान् (करति) कुर्य्यात् (जोषिषत्) जुषेत सेवेत। व्यत्ययेन परस्मैपदम् (हि) खलु ॥१॥
भावार्थभाषाः - यः सूर्य्यो जलमाकृष्य वर्षयित्वा नदीर्वाहयत्यन्नान्युत्पादयति तदशनेन प्राणिनः स्वरूपवतः करोति स सर्वैर्युक्त्या सेवनीयः ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अग्नी, मेघ, अपत्य, विवाह व विद्वानाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

भावार्थभाषाः - जो सूर्य जल आकर्षित करून वृष्टी करवून नद्यांना प्रवाहित करतो, अन्न उत्पन्न करतो व त्याचे सेवन केल्यामुळे प्राणी सुंदर बनतात त्याचा सर्वांनी युक्तीने स्वीकार करावा. ॥ १ ॥