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चि॒त्रं तद्वो॑ मरुतो॒ याम॑ चेकिते॒ पृश्न्या॒ यदूध॒रप्या॒पयो॑ दु॒हुः। यद्वा॑ नि॒दे नव॑मानस्य रुद्रियास्त्रि॒तं जरा॑य जुर॒ताम॑दाभ्याः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

citraṁ tad vo maruto yāma cekite pṛśnyā yad ūdhar apy āpayo duhuḥ | yad vā nide navamānasya rudriyās tritaṁ jarāya juratām adābhyāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

चि॒त्रम्। तत्। वः॒। म॒रु॒तः॒। याम॑। चे॒कि॒ते॒। पृश्न्याः॑। यत्। ऊधः॑। अपि॑। आ॒पयः॑। दु॒हुः। यत्। वा॒। नि॒दे। नव॑मानस्य। रु॒द्रि॒याः॒। त्रि॒तम्। जरा॑य। जु॒र॒ताम्। अ॒दा॒भ्याः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:34» मन्त्र:10 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:20» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अदाभ्याः) न नष्ट करने योग्य (रुद्रियाः) मध्यम विद्वानों के सम्बन्धी (मरुतः) मनुष्यो ! (यत्) जिस (वः) तुम्हारा (चित्रम्) अद्भुत (याम) योग्य कर्म वा (यत्) जिस (पृश्न्याः) अन्तरिक्ष में सिद्ध हुए (ऊधः) जल वा दूध के अधिकरण को (आपयः) मित्रभाव को प्राप्त हुए (दुहुः) परिपूर्ण करते हैं (वा) अथवा (यः) जो (नवमानस्य) स्तुति करने की (निदे) निन्दा करनेवाले के लिये (त्रितम्) हिंसा करनेवाले को (जुरताम्) जीर्णों की (जराय) स्तुति करनेवाले के लिये (अपि) भी (चेकिते) जानता है (तत्) उसको तुम लेओ ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! तुम निन्दा करने योग्य की निन्दा तथा स्तुति करने योग्य की प्रशंसा कर अद्भुत कर्मों को करो, जिससे पूरी आयु भोग वृद्धावस्था पाकर मरण हो, उस अनुष्ठान को करो ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्विषयमाह।

अन्वय:

हे अदाभ्या रुद्रिया मरुतो यद्वश्चित्रं याम यत्पृश्न्या ऊध आपयो दुहुः। वा यो नवमानस्य निदे त्रितं जुरतां जरायाऽपि चेकिते तद्यूयं गृह्णत ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (चित्रम्) अद्भुतम् (तत्) (वः) युष्माकम् (मरुतः) (याम) प्राप्तव्यं कर्म (चेकिते) जानाति (पृश्न्याः) पृश्नावन्तरिक्षे भवम् (यत्) (ऊधः) पयोऽधिकरणम् (अपि) (आपयः) मित्रतां व्याप्ताः (दुहुः) पिप्रति। अत्र लिटि वाच्छन्दसीति द्वित्वाभावः (यत्) (वा) (निदे) निन्दकाय (नवमानस्य) स्तोतुः (रुद्रियाः) रुद्रस्य मध्यमस्य विदुषः सम्बन्धिनः (त्रितम्) हिंसकम् (जराय) स्तावकाय (जुरताम्) जीर्णानाम् (अदाभ्याः) अहिंसनीयाः ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसो यूयं निन्दनीयस्य निन्दां स्तवनीयस्य प्रशंसां कृत्वाऽद्भुतानि कर्माणि कुरुत। येन पूर्णमायुर्भुक्त्वा वृद्धावस्थां प्राप्य मरणं स्यात्तदनुतिष्ठत ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो! तुम्ही निंदा करणाऱ्यांची निंदा व स्तुती करणाऱ्यांची स्तुती करून अद्भुत काम करा. ज्यामुळे पूर्ण आयुष्य भोगून वृद्धावस्था प्राप्त करून मरण यावे, असे अनुष्ठान करा. ॥ १० ॥