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प्र ब॒भ्रवे॑ वृष॒भाय॑ श्विती॒चे म॒हो म॒हीं सु॑ष्टु॒तिमी॑रयामि। न॒म॒स्या क॑ल्मली॒किनं॒ नमो॑भिर्गृणी॒मसि॑ त्वे॒षं रु॒द्रस्य॒ नाम॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra babhrave vṛṣabhāya śvitīce maho mahīṁ suṣṭutim īrayāmi | namasyā kalmalīkinaṁ namobhir gṛṇīmasi tveṣaṁ rudrasya nāma ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। ब॒भ्रवे॑। वृ॒ष॒भाय॑। श्वि॒ती॒चे। म॒हः। म॒हीम्। सु॒ऽस्तु॒तिम्। ई॒र॒या॒मि॒। न॒म॒स्य। क॒ल्म॒ली॒किन॑म्। नमः॑ऽभिः। गृ॒णी॒मसि॑। त्वे॒षम्। रु॒द्रस्य॑। नाम॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:33» मन्त्र:8 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:17» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषयको अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे वैद्य जिस (वृषभाय) श्रेष्ठ (बभ्रवे) धारण करनेवाले (महः) बड़े (श्वितीचे) आवरण को प्राप्त होते हुए वैद्य के लिये (महीम्) बड़ी (सुष्टुतिम्) सुन्दर स्तुति की (प्र,ईरयामि) प्रेरणा देता हूँ, सो आप मुझे (नमस्य) नमिये जिस (रुद्रस्य) अच्छे वैद्य का (कल्मलीकिनम्) देदीप्यमान (त्वेषम्) प्रकाशमान (नाम) नाम है उसकी हम लोग (नमोभिः) सत्कारों से (गृणीमसि) प्रशंसा करते हैं ॥८॥
भावार्थभाषाः - विद्यार्थियों की योग्यता है जो कि विद्या ग्रहण करावे, उसका सदा सत्कार करें, जिसकी वैद्यकशास्त्र में प्रसिद्धि है, उसी से वैद्यविद्या का अध्ययन करना चाहिये ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे वैद्य यस्मै वृषभाय बभ्रवे महः श्वितीचे वैद्याय महीं सुष्टुतिं प्रेरयामि स त्वं मां नमस्य यस्य रुद्रस्य कल्मलीकिनं त्वेषं नामास्ति तं वयं नमोभिर्गृणीमसि ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (बभ्रवे) धारकाय (वृषभाय) श्रेष्ठाय (श्वितीचे) यः श्वितिमावरणमञ्चति तस्मै (महः) महते (महीम्) महतीम् (सुष्टुतिम्) शोभनां स्तुतिम् (ईरयामि) प्रेरयामि (नमस्य) नम्रो भव। अत्र संहितायामिति दीर्घः (कल्मलीकिनम्) देदीप्यमानम्। कल्मलीकिनमिति ज्वलतोनाम। निघं० १। १७ (नमोभिः) नमस्कारैः (गृणीमसि) प्रशंसामः (त्वेषम्) प्रकाशमानम् (रुद्रस्य) सद्वैद्यस्य (नाम) ॥८॥
भावार्थभाषाः - विद्यार्थिनां योग्यताऽस्ति यो विद्या ग्राहयेत्तं सदा सत्कुर्युः, यस्य वैद्यकशास्त्रे प्रसिद्धिरस्ति तस्मादेव वैद्यकविद्याऽध्येतव्या ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो विद्या देतो त्याचा विद्यार्थ्यांनी सत्कार करावा. ज्याची वैद्यकशास्त्रात प्रसिद्धी आहे त्याच्याद्वारे वैद्यक विद्येचे अध्ययन करावे. ॥ ८ ॥