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उन्मा॑ ममन्द वृष॒भो म॒रुत्वा॒न्त्वक्षी॑यसा॒ वय॑सा॒ नाध॑मानम्। घृणी॑व च्छा॒याम॑र॒पा अ॑शी॒या वि॑वासेयं रु॒द्रस्य॑ सु॒म्नम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

un mā mamanda vṛṣabho marutvān tvakṣīyasā vayasā nādhamānam | ghṛṇīva cchāyām arapā aśīyā vivāseyaṁ rudrasya sumnam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उत्। मा॒। म॒म॒न्द॒। वृ॒ष॒भः। म॒रुत्वा॑न्। त्वक्षी॑यसा। वय॑सा। नाध॑मानम्। घृणि॑ऽइव। छा॒याम्। अ॒र॒पाः। अ॒शी॒य॒। वि॒वा॒से॒य॒म्। रु॒द्रस्य॑। सु॒म्नम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:33» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:17» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (वृषभः) सुखों के वर्षानेवाले (मरुत्वान्) मनुष्य आदि बहुत प्रजाजनों से युक्त (अरपाः) अविद्यमानपाप-निष्पाप वैद्य (त्वक्षीयसा) प्रदीप्त (वयसा) आयु से (नाधमानम्) याचना किया हुआ (मा) मुझको (उत्,ममन्द) उत्तमता से चाहते हो उनकी उत्तेजना से मैं (घृणीव) सूर्य्य के समान (छायाम्) घर का (विवासेयम्) सेवन करूँ और (सुम्नम्) सुख को (आ,अशीव) अच्छे प्रकार प्राप्त करूँ ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो वैद्य हमारे रोगों का निवारण कर मनुष्यों को दीर्घ आयुवाले करते हैं, वे सूर्य्य के समान प्रकाशित कीर्त्तिवाले होते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

यो वृषभो मरुत्वानरपा वैद्यस्त्वक्षीयसा वयसा नाधमानं मा उन्ममन्द तस्य सकाशादहं घृणीव छायां विवासेयम्, सुम्नमाशीय ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत्) (मा) माम् (ममन्द) मन्दते कामयते (वृषभः) सुखानां वर्षयिता (मरुत्वान्) मनुष्यादिबहुप्रजायुक्तः (त्वक्षीयता) प्रदीप्तेन (वयसा) आयुषा (नाधमानम्) (याचमानम्) (घृणीव) प्रदीप्तः सूर्य्य इव (छायाम्) गृहम्। छायेति गृहना० निघं० ३। ४ (अरपाः) अविद्यमानं रपः पापं यस्य सः (अशीय) प्राप्नुयाम्। अत्र संहितायामिति दीर्घः (आ) (विवासेयम्) परिचरेयम् (रुद्रस्य) वैद्यस्य सकाशात् (सुम्नम्) सुखम् ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये वैद्या अस्माकं रोगान्निवार्य्य दीर्घायुषो जनान् कुर्वन्ति ते सूर्य्य इव प्रदीप्तकीर्त्तयो भवन्ति ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे वैद्य रोगांचे निवारण करून माणसांना दीर्घायू करतात ते सूर्याप्रमाणे प्रकाशित होऊन कीर्तिमान बनतात. ॥ ६ ॥