ए॒वा ब॑भ्रो वृषभ चेकितान॒ यथा॑ देव॒ न हृ॑णी॒षे न हंसि॑। ह॒व॒न॒श्रुन्नो॑ रुद्रे॒ह बो॑धि बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥
evā babhro vṛṣabha cekitāna yathā deva na hṛṇīṣe na haṁsi | havanaśrun no rudreha bodhi bṛhad vadema vidathe suvīrāḥ ||
ए॒व। ब॒भ्रो॒ इति॑। वृ॒ष॒भ॒। चे॒कि॒ता॒न॒। यथा॑। दे॒व॒। न। हृ॒णी॒षे। न। हंसि॑। ह॒व॒न॒ऽश्रुत्। नः॒। रु॒द्र॒। इ॒ह। बो॒धि॒। बृ॒हत्। व॒दे॒म॒। वि॒दथे॑। सु॒ऽवीराः॑॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषयको अगले मन्त्र में कहा है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे बभ्रो वृषभ चेकितान देव रुद्र यतो हवनश्रुत् त्वमिह यथा नः सुखानि न हृणीषे सर्वेषां सुखं बोधि तस्माद्वयं सुवीराः सन्त एव यथा विदथे बृहद्वदेम ॥१५॥