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कु॒मा॒रश्चि॑त्पि॒तरं॒ वन्द॑मानं॒ प्रति॑ नानाम रुद्रोप॒यन्त॑म्। भूरे॑र्दा॒तारं॒ सत्प॑तिं गृणीषे स्तु॒तस्त्वं भे॑ष॒जा रा॑स्य॒स्मे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kumāraś cit pitaraṁ vandamānam prati nānāma rudropayantam | bhūrer dātāraṁ satpatiṁ gṛṇīṣe stutas tvam bheṣajā rāsy asme ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कु॒मा॒रः। चि॒त्। पि॒तर॒म्। वन्द॑मानम्। प्रति॑। न॒ना॒म॒। रु॒द्र॒। उ॒प॒ऽयन्त॑म्। भूरेः॑। दा॒तार॑म्। सत्ऽप॑तिम्। गृ॒णी॒षे॒। स्तु॒तः। त्वम्। भे॒ष॒जा। रा॒सि॒। अ॒स्मे इति॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:33» मन्त्र:12 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्याध्ययन विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (रुद्र) दुष्टों को रुलानेवाले विद्वान् (स्तुतः) प्रशंसा को प्राप्त (त्वम्) आप (पितरम्) पिता को (कुमारः) ब्रह्मचारी (चित्) जैसे-वैसे (वन्दमानम्) स्तुति को प्राप्त और (उपयन्तम्) समीप आते हुए (भूरेः) बहुत पदार्थ के (दातारम्) देने वा (सत्पतिम्) सज्जनों के पालनेवाले विद्वान् के प्रति (ननाम) नमस्कार करता वा (गृणीषे) उसकी स्तुति करते हैं तथा (अस्मे) हमलोगों के लिये (भेषजा) औषधों को (रासि) देता है इससे हम लोगों को सत्कार करने के योग्य हैं ॥१२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे अच्छा पुत्र पिता का सत्कार करता वा नमता वा स्तुति करता है, वैसे अच्छा विद्यार्थी पढ़ानेवाले को प्रसन्न करता है ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्याध्ययनविषयमाह।

अन्वय:

हे रुद्र स्तुतस्त्वं पितरं कुमारश्चिद्वन्दमानमुपयन्तं भूरेर्दातारं सत्पतिं प्रति ननाम गृणीषेऽस्मे भेषजा रास्यतोऽस्माभिः सत्कर्त्तव्योऽसि ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कुमारः) ब्रह्मचारी (चित्) इव (पितरम्) जनकम् (वन्दमानम्) स्तूयमानम्। अत्र कर्मणि शानच् (प्रति) (ननाम) नमति। अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदैर्घ्यम् (रुद्र) (उपयन्तम्) समीपं प्राप्नुवन्तम् (भूरेः) बहोः (दातारम्) (सत्पतिम्) सतां पालकम् (गृणीषे) स्तौषि (स्तुतः) प्रशंसितः (त्वम्) (भेषजा) औषधानि (रासि) ददासि (अस्मे) अस्मभ्यम् ॥१२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सत्पुत्रः पितरं सत्करोति नमति स्तौति तथा सदध्येताध्यापकं प्रसादयति ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा चांगला पुत्र पित्याचा सत्कार करतो, नम्र असतो, स्तुती करतो तसा चांगला विद्यार्थी अध्यापकाला प्रसन्न करतो. ॥ १२ ॥