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स्तु॒हि श्रु॒तं ग॑र्त॒सदं॒ युवा॑नं मृ॒गं न भी॒ममु॑पह॒त्नुमु॒ग्रम्। मृ॒ळा ज॑रि॒त्रे रु॑द्र॒ स्तवा॑नो॒ऽन्यं ते॑ अ॒स्मन्नि व॑पन्तु॒ सेनाः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

stuhi śrutaṁ gartasadaṁ yuvānam mṛgaṁ na bhīmam upahatnum ugram | mṛḻā jaritre rudra stavāno nyaṁ te asman ni vapantu senāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्तु॒हि। श्रु॒तम्। ग॒र्त॒ऽसद॑म्। युवा॑नम्। मृ॒गम्। न। भी॒मम्। उ॒प॒ऽह॒त्नुम्। उ॒ग्रम्। मृ॒ळ। ज॒रि॒त्रे। रु॒द्र॒। स्तवा॑नः। अ॒न्यम्। ते॒। अ॒स्मत्। नि। व॒प॒न्तु॒। सेनाः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:33» मन्त्र:11 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:18» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:4» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषयको अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (रुद्र) अन्यायकारियों को रुलानेवाले सेनापति ! आप (मृगम्) सिंह के (न) समान (भीमम्) भयंकर (श्रुतम्) जो सुने हैं उस (गर्त्तसदम्) घर में बैठकर (उपहत्नुम्) और समीप में मारते हुए (उग्रम्) क्रूर (युवानम्) पूर्ण बलवाले पुरुष की (स्तुहि) स्तुति कर और (जरित्रे) स्तुति करनेवाले के लिये (मृळ) सुखी कर (स्तवानः) स्तुति करता हुआ (अन्यम्) और धर्मात्मा की प्रशंसा कर जिससे विद्वान् (अस्मत्) मेरी उत्तेजना से (ते) तेरी (सेनाः) सेना अर्थात् बल को (नि,वपन्तु) विस्तारें ॥११॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो राज्य बढ़ाने की इच्छा करें, वे सिंह के समान शत्रुओं में भयंकर और श्रेष्ठों में आनन्द देनेवालों का राजकार्य्य और सेना में सत्कार कर और उनको आज्ञा दे न्याय से निरन्तर राज्य की पालना करे ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे रुद्र सेनेश त्वं मृगं न भीमं श्रुतं गर्त्तसदमुपहत्नुमुग्रं युवानं स्तुहि जरित्रे मृळ स्तवानः सन्नन्यं प्रशंस यतो विद्वांसोऽस्मत्ते सेना निवपन्तु ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (स्तुहि) (श्रुतम्) यश्श्रुतवान् तम् (गर्त्तसदम्) यो गर्त्ते गृहे सीदति तम् (युवानम्) पूर्णबलम् (मृगम्) सिंहम् (न) इव (भीमम्) भयङ्करम् (उपहत्नुम्) य उपहन्ति तम् (उग्रम्) क्रूरम् (मृळ) सुखम्। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः (जरित्रे) स्तावकाय (रुद्र) अन्यायकारिणां रोदयितः (स्तवानः) स्तुवन् (अन्यम्) धर्मात्मानम् (ते) तव (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् (नि) (वपन्तु) विस्तारयन्तु (सेनाः) बलानि ॥११॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये राज्यं वर्द्धितुमिच्छेयुस्ते सिंहवच्छत्रूणां भयंकराञ्छ्रेष्ठानामानन्दप्रदान् राजकार्य्ये सेनायां च सत्कृत्य नियोज्य न्यायेन राज्यं सततं पालयेयुः ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे राज्य वाढविण्याची इच्छा करतात त्यांनी शत्रूंबरोबर सिंहासारखे भयंकर रीतीने वागावे व श्रेष्ठांना आनंद देणाऱ्या लोकांचा राजकार्यात व सेनेमध्ये सत्कार करावा व न्यायाने निरंतर राज्याचे पालन करावे. ॥ ११ ॥