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यास्ते॑ राके सुम॒तयः॑ सु॒पेश॑सो॒ याभि॒र्ददा॑सि दा॒शुषे॒ वसू॑नि। ताभि॑र्नो अ॒द्य सु॒मना॑ उ॒पाग॑हि सहस्रपो॒षं सु॑भगे॒ ररा॑णा॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yās te rāke sumatayaḥ supeśaso yābhir dadāsi dāśuṣe vasūni | tābhir no adya sumanā upāgahi sahasrapoṣaṁ subhage rarāṇā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

याः। ते॒। रा॒के॒। सु॒ऽम॒तयः॑। सु॒ऽपेश॑सः। याभिः॑। ददा॑सि। दा॒शुषे॑। वसू॑नि। ताभिः॑। नः॒। अ॒द्य। सु॒ऽमनाः॑। उ॒प॒ऽआग॑हि। स॒ह॒स्र॒ऽपो॒षम्। सु॒ऽभ॒गे॒। ररा॑णा॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:32» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:15» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (राके) रात्रि के समान सुख देनेवाली जो (ते) आपकी (सुपेशसः) सुन्दर रूपवाली दीप्ति और (सुमतयः) उत्तम बुद्धि हैं जिनसे आप (दाशुषे) देनेवाले पति के लिये (वसूनि) धनों को (ददासि) देती हो उनसे (नः) हमलोगों को (अद्य) आज (सुमनाः) प्रसन्नचित्त हुई (उपागहि) समीप आओ, हे (सुभगे) सौभाग्ययुक्त स्त्री (रराणा) उत्तम देनेवाली होती हुई हम लोगों के लिये (सहस्रपोषम्) असङ्ख्य प्रकार से पुष्टि को देओ ॥५॥
भावार्थभाषाः - यदि सुलक्षणा विदुषी स्त्री श्रेष्ठ विद्वान् जन की पत्नी हो तो धन की और सुख की बहुत प्रकार प्राप्ति हो ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे राके यास्ते सुपेशसः सुमतयः सन्ति याभिस्त्वं दाशुषे वसूनि ददासि ताभिर्नोऽद्य सुमनाः सती उपागहि। हे सुभगे त्वं रराणा सती नोऽस्मभ्यं सहस्रपोषं देहि ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (याः) (ते) तव (राके) सुखप्रदे रात्रिरिव (सुमतयः) सुष्ठुप्रज्ञाः (सुपेशसः) सुरूपा दीप्तयः (याभिः) (ददासि) (दाशुषे) दात्रेऽपत्ये (वसूनि) द्रव्याणि (ताभिः) (नः) अस्मान् (अद्य) (सुमनाः) प्रसन्नचित्ताः (उपागहि) (सहस्रपोषम्) असङ्ख्यपुष्टिम् (सुभगे) सौभाग्ययुक्ते (रराणा) सुष्ठुदात्री ॥५॥
भावार्थभाषाः - यदि सुलक्षणा विदुषी स्त्री श्रेष्ठविदुषो जनस्य पत्नी स्यात्तर्हि धनस्य सुखस्य च बहुविधा प्राप्तिः स्यात् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जर श्रेष्ठ विद्वान माणसाची सुलक्षणा विदुषी स्त्री असेल तर पुष्कळ धन व सुख प्राप्त होते. ॥ ५ ॥