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अहे॑ळता॒ मन॑सा श्रु॒ष्टिमा व॑ह॒ दुहा॑नां धे॒नुं पि॒प्युषी॑मस॒श्चत॑म्। पद्या॑भिरा॒शुं वच॑सा च वा॒जिनं॒ त्वां हि॑नोमि पुरुहूत वि॒श्वहा॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

aheḻatā manasā śruṣṭim ā vaha duhānāṁ dhenum pipyuṣīm asaścatam | padyābhir āśuṁ vacasā ca vājinaṁ tvāṁ hinomi puruhūta viśvahā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अहे॑ळता। मन॑सा। श्रु॒ष्टिम्। आ। व॒ह॒। दुहा॑नाम्। धे॒नुम्। पि॒प्युषी॑म्। अ॒स॒श्चत॑म्। पद्या॑भिः। आ॒शुम्। वच॑सा। च॒। वा॒जिन॑म्। त्वाम्। हि॒नो॒मि॒। पु॒रु॒ऽहू॒त॒। वि॒श्वहा॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:32» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:15» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पुरुहूत) बहुतों से सत्कार पाये हुए आप (अहेळता) अनादर किये हुए (मनसा) विज्ञान से वा (पद्याभिः) प्राप्त करने योग्य क्रियाओं से (वचसा,च) और वचन से (असश्चतम्) अप्राप्त (पिप्युषीम्) बड़ी हुई बढ़ाने वा बढ़वाने (दुहानाम्) और सुख को अच्छे प्रकार पूरा करनेवाली (धेनुम्) गौ के समान वाणी को (विश्वहा) सब दिन (श्रुष्टिम्) शीघ्र (आ,वह) प्राप्त होओ वा प्राप्त कराओ मैं (वाजिनम्) प्रशंसित विज्ञानवाले (त्वाम्) आपको (हिनोमि) प्राप्त होता हूँ ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो समाधानयुक्त अन्तःकरण से औरों के लिये उत्तम शिक्षायुक्त वाणी को शीघ्र प्राप्त कराता है, उसको सब सत्कार करके बढ़ावें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे पुरुहूत त्वमहेळता मनसा पद्योभिर्वचसा चासश्चतं पिप्युषीं दुहानां धेनुं विश्वहा श्रुष्टिमावह। अहं वाजिनं त्वां हिनोमि ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अहेळता) अनादृतेन (मनसा) विज्ञानेन (श्रुष्टिम्) सद्यः (आ) समन्तात् (वह) प्राप्नुहि प्रापय वा (दुहानाम्) सुखप्रपूरिकाम् (धेनुम्) गामिव वाणीम् (पिप्युषीम्) प्रवृद्धां वर्द्धयित्रीं वर्द्धयतीं वा (असश्चतम्) अप्राप्तम् (पद्याभिः) प्रापणीयाभिः क्रियाभिः (आशुम्) सद्यः (वचसा) (च) (वाजिनीम्) प्रशस्तविज्ञानवन्तम् (त्वाम्) (हिनोमि) प्राप्नोमि (पुरुहूत) बहुभिः सत्कृत (विश्वहा) सर्वाणि दिनानि। अत्र कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे। २। ३। ५ इति द्वितीया ॥३॥
भावार्थभाषाः - यो समाहितेनान्तःकरणेनान्येभ्यः सुशिक्षितां वाचं सद्यः प्रापयति तं सर्वे सत्कृत्य वर्द्धयन्तु ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो संतुष्ट अन्तःकरणाने इतरांसाठी सुसंस्कारित वाणी वापरतो त्याचा सर्वांनी सत्कार करावा. ॥ ३ ॥