वांछित मन्त्र चुनें

उ॒त स्य न॒ इन्द्रो॑ वि॒श्वच॑र्षणिर्दि॒वः शर्धे॑न॒ मारु॑तेन सु॒क्रतुः॑। अनु॒ नु स्था॑त्यवृ॒काभि॑रू॒तिभी॒ रथं॑ म॒हे स॒नये॒ वाज॑सातये॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta sya na indro viśvacarṣaṇir divaḥ śardhena mārutena sukratuḥ | anu nu sthāty avṛkābhir ūtibhī ratham mahe sanaye vājasātaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। स्यः। नः॒। इन्द्रः॑। वि॒श्वऽच॑र्षणिः। दि॒वः। शर्धे॑न। मारु॑तेन। सु॒ऽक्रतुः॑। अनु॑। नु। स्था॒ति॒। अ॒वृ॒काभिः॑। ऊ॒तिऽभिः॑। रथ॑म्। म॒हे। स॒नये॑। वाज॑ऽसातये॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:31» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:14» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजप्रजा विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वचर्षणिः) सबको दिखाने चितानेवाला (सुक्रतुः) उत्तम बुद्धि युक्त (इन्द्रः) सूर्य के तुल्य तेजस्वी सभापति (दिवः) जैसे प्रकाश से सूर्य शोभित हो वैसे (अवृकाभिः) चोर आदि दुष्टों से रहित (ऊतिभिः) रक्षा आदि से (मारुतेन) मनुष्यसम्बन्धी (शर्द्धेन) बल के साथ (महे) बड़े (सनये) सुख के सम्यक् विभाग के लिये और (वाजसातये) सङ्ग्राम के सम्यक् सेवने के लिये (नः) हमारे (रथम्) विमानादि यान का (अनु,स्थाति) अनुष्ठान करता है (स्यः) वह (उत) तो (नु) शीघ्र ऐश्वर्य्य को प्राप्त होता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य अपने प्रताप से सब जगत् की पालना करता, वैसे धार्मिक प्रजा और राजपुरुष अपने राज्य की रक्षा किया करें ॥३॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजप्रजाविषयमाह।

अन्वय:

विश्वचर्षणिस्सुक्रतुरिन्द्रो दिवः सूर्य्य इवावृकाभिरूतिभिर्मारुतेन शर्द्धेन महे सनये वाजसातये नो रथमनुष्ठाति स्य उत न्वैश्वर्य्यमाप्नोति ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) (स्यः) सः (नः) अस्माकम् (इन्द्रः) सूर्य्य इव सभेशः (विश्वचर्षणिः) विश्वस्य दर्शकः (दिवः) प्रकाशात् (शर्द्धेन) बलेन (मारुतेन) मनुष्याणामनेन (सुक्रतुः) श्रेष्ठप्रज्ञः (अनु) (नु) शीघ्रम् (स्थाति) तिष्ठति (अवृकाभिः) अविद्यमानस्तेनादिभिः (ऊतिभिः) रक्षादिभिः (रथम्) विमानादियानम् (महे) महते (सनये) सुखसंविभागाय (वाजसातये) वाजस्य सङ्ग्रामस्य सम्यक् सेवनाय ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्यः स्वप्रतापेन सर्वं जगत्पालयति तथा धार्मिकाः प्रजाराजपुरुषाः स्वराज्यं पालयेयुः ॥३॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य आपल्या पराक्रमाने सर्व जगाचे पालन करतो तसे धार्मिक प्रजा व राजपुरुषांनी आपल्या राज्याचे रक्षण करावे. ॥ ३ ॥