यो वृ॒त्राय॒ सिन॒मत्राभ॑रिष्य॒त्प्र तं जनि॑त्री वि॒दुष॑ उवाच। प॒थो रद॑न्ती॒रनु॒ जोष॑मस्मै दि॒वेदि॑वे॒ धुन॑यो य॒न्त्यर्थ॑म्॥
yo vṛtrāya sinam atrābhariṣyat pra taṁ janitrī viduṣa uvāca | patho radantīr anu joṣam asmai dive-dive dhunayo yanty artham ||
यः। वृ॒त्राय॑। सिन॑म्। अत्र॑। अभ॑रिष्यत्। प्र। तम्। जनि॑त्री। वि॒दुषे॑। उ॒वा॒च॒। प॒थः। रद॑न्तीः। अनु॑। जोष॑म्। अ॒स्मै॒। दि॒वेऽदि॑वे। धुन॑यः। य॒न्ति॒। अर्थ॑म्॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर सूर्य्यमण्डल के कृत्य विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः सूर्य्यमण्डलकृत्यविषयमाह।
यः सूर्य्योऽत्र वृत्राय सिनमभरिष्यत्तं जनित्री विदुषेऽपत्याय प्रोवाच। अत्र रदन्तीर्धुनयो दिवेदिवेऽर्थं यन्ति पथोऽनु जोषमुत्पादयन्ति तासां कृत्यं विदुषे पितापि प्रोवाच ॥२॥