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पि॒शङ्ग॑रूपः सु॒भरो॑ वयो॒धाः श्रु॒ष्टी वी॒रो जा॑यते दे॒वका॑मः। प्र॒जां त्वष्टा॒ वि ष्य॑तु॒ नाभि॑म॒स्मे अथा॑ दे॒वाना॒मप्ये॑तु॒ पाथः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

piśaṅgarūpaḥ subharo vayodhāḥ śruṣṭī vīro jāyate devakāmaḥ | prajāṁ tvaṣṭā vi ṣyatu nābhim asme athā devānām apy etu pāthaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पि॒शङ्ग॑ऽरूपः। सु॒ऽभरः॑। व॒यः॒ऽधाः। श्रु॒ष्टी। वी॒रः। जा॒य॒ते॒। दे॒वऽका॑मः। प्र॒ऽजाम्। त्वष्टा॑। वि। स्य॒तु॒। नाभि॑म्। अ॒स्मे इति॑। अथ॑। दे॒वाना॑म्। अपि॑। ए॒तु॒। पाथः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:3» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पुरुषुविषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (पिशङ्गरूपः) सुवर्ण के रूप के समान जिसका रूप (सुभरः) भरण-पोषण करता हुआ (वयोधाः) गर्भ स्थापन करनेवाला (देवकामः) और विद्वानों की कामना करता वह (श्रुष्टी) शीघ्र (वीरः) सकल विद्याओं को प्राप्त होनेवाला पुरुष (जायते) उत्पन्न होता है जैसे (त्वष्टा) विविध रूप रचनेवाला ईश्वर (अस्मे) हम लोगों को (प्रजाम्) सन्तान (विष्यतु) देवे। (अथ) इसके अनन्तर हम (देवानाम्) विद्वानों की (नाभिम्) नाभि को और (पाथः) रक्षा करनेहारे अन्न को (अपि) भी (एतु) प्राप्त होवें ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो अच्छा संस्कार किये रोग हरने और बुद्धि देनेवाले उत्तम अन्न का भोजन कर सन्तोनोत्पत्ति करते हैं, उनके सन्तान विद्वानों के प्रिय दीर्घ आयुवाले और सुशील होते हैं ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ पुरुषविषयमाह।

अन्वय:

यथा पिशङ्गरूपः सुभरो वयोधा देवकामः श्रुष्टी वीरो मनुष्यो जायते। यथा त्वष्टाऽस्मे प्रजां विष्यत्वथाऽस्मे देवानां नाभिं पाथोऽप्येतु ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पिशङ्गऽरूपः) पिशङ्गस्य सुवर्णस्येव स्वरूपं यस्य सः (सुभरः) यः शोभनं भरति सः (वयोधा) यो वयः प्रजननं दधाति (श्रुष्टी) शीघ्रम् (वीरः) अजति सकला विद्याः प्राप्नोति सः (जायते) प्रसिद्धो भवति (देवकामः) यो देवान् कामयते सः (प्रजाम्) (त्वष्टा) विविधरूपस्य निर्माता (वि) (स्यतु) (नाभिम्) (अस्मे) अस्माकम् (अथ) पुनः। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (देवानाम्) विदुषाम् (अपि) निश्चये (एतु) प्राप्नोतु (पाथः) रक्षकमन्नम् ॥९॥
भावार्थभाषाः - ये सुसंस्कृतं रोगहरं बुद्धिप्रदमन्नं भुक्त्वाऽपत्यं जनयन्ति तेषां सन्ताना विद्वत्प्रिया दीर्घायुषः सुशीला जायन्ते ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे संस्कारित केलेले, रोगनाशक व बुद्धिप्रद अन्नाचे भोजन करतात व संतान उत्पन्न करतात, त्यांची संताने विद्वानांना प्रिय, दीर्घायुषी व सुशील असतात. ॥ ९ ॥