नमः॑ पु॒रा ते॑ वरुणो॒त नू॒नमु॒ताप॒रं तु॑विजात ब्रवाम। त्वे हि कं॒ पर्व॑ते॒ न श्रि॒तान्यप्र॑च्युतानि दूळभ व्र॒तानि॑॥
namaḥ purā te varuṇota nūnam utāparaṁ tuvijāta bravāma | tve hi kam parvate na śritāny apracyutāni dūḻabha vratāni ||
नमः॑। पु॒रा। ते॒। व॒रु॒ण॒। उ॒त। नू॒नम्। उ॒त। अ॒प॒रम्। तु॒वि॒ऽजा॒त॒। ब्र॒वा॒म॒। त्वे इति॑। हि। क॒म्। पर्व॑ते। न। श्रि॒तानि॑। अप्र॑ऽच्युतानि। दुः॒ऽद॒भ॒। व्र॒तानि॑॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे दूळभ तुविजात वरुण वयं ते पुरा नूनमुतापरं नमो ब्रवाम। पर्वते न त्वे कं श्रितान्यप्रच्युतानि ह्युत व्रतानि ब्रवाम ॥८॥