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यो मे॑ राज॒न्युज्यो॑ वा॒ सखा॑ वा॒ स्वप्ने॑ भ॒यं भी॒रवे॒ मह्य॒माह॑। स्ते॒नो वा॒ यो दिप्स॑ति नो॒ वृको॑ वा॒ त्वं तस्मा॑द्वरुण पाह्य॒स्मान्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo me rājan yujyo vā sakhā vā svapne bhayam bhīrave mahyam āha | steno vā yo dipsati no vṛko vā tvaṁ tasmād varuṇa pāhy asmān ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। मे॒। रा॒ज॒न्। युज्यः॑। वा॒। सखा॑। वा॒। स्वप्ने॑। भ॒यम्। भी॒रवे॑। मह्य॑म्। आह॑। स्ते॒नः। वा॒। यः। दिप्स॑ति। नः॒। वृकः॑। वा॒। त्वम्। तस्मा॑त्। व॒रु॒ण॒। पा॒हि॒। अ॒स्मान्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:28» मन्त्र:10 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:10» मन्त्र:5 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजपुरुष विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वरुण) श्रेष्ठ (राजन्) राजपुरुष (यः) जो (ये) मेरा (युज्यः) मेली (सखा) मित्र जागने (वा) अथवा (स्वप्ने) सोने में (भयम्) भय को प्राप्त होता (वा) अथवा (भीरवे) डरपोंक (मह्यम्) मुझको भय प्राप्त होता है ऐसा (आह) कहे (यः) जो (स्तेनः) चोर (वा) अथवा डाकू (नः) हमको (दिप्सति) धमकाता मारना चाहता (तस्मात्) उससे (त्वम्) आप (अस्मान्) हम लोगों की (पाहि) रक्षा कीजिये ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जो राजपुरुष प्रजा में निर्भय दुष्टों का निग्रह कर सब प्रजा की रक्षा करते हैं, वे सब दुःखों से रहित हो जाते हैं ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजपुरुषविषयमाह।

अन्वय:

हे वरुण राजन् यो मे युज्यः सखा जागृते स्वप्ने वा भयं प्राप्नोति वा भीरवे मह्यं भयं प्राप्नोतीत्याह यः स्तेनो वा दस्युर्नो दिप्सति वृको वा दिप्सति तस्मात् त्वमस्मान् पाहि ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (मे) मम (राजन्) (युज्यः) योक्तुमर्हः (वा) (सखा) मित्रः (वा) (स्वप्ने) निद्रायाम् (भयम्) भीरवे भयस्वभावाय (मह्यम्) (आह) प्रतिवदेत् (स्तेनः) चोरः (वा) (यः) (दिप्सति) हिंसितुमिच्छति (नः) अस्मान् (वृकः) वृकवदुत्कोचकश्चोरः (वा) (त्वम्) (तस्मात्) (वरुण) (श्रेष्ठ) (पाहि) (अस्मान्) ॥१०॥
भावार्थभाषाः - ये राजपुरुषाः प्रजायामभयं दुष्टानां निग्रहं कृत्वा सर्वां प्रजां रक्षन्ति ते निर्दुःखा जायन्ते ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे राजपुरुष प्रजेत निर्भयता निर्माण करून दुष्टांचा निग्रह करतात व सर्व प्रजेचे रक्षण करतात ते सर्व दुःखांपासून पृथक होतात. ॥ १० ॥