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इ॒दं क॒वेरा॑दि॒त्यस्य॑ स्व॒राजो॒ विश्वा॑नि॒ सन्त्य॒भ्य॑स्तु म॒ह्ना। अति॒ यो म॒न्द्रो य॒जथा॑य दे॒वः सु॑की॒र्तिं भि॑क्षे॒ वरु॑णस्य॒ भूरेः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

idaṁ kaver ādityasya svarājo viśvāni sānty abhy astu mahnā | ati yo mandro yajathāya devaḥ sukīrtim bhikṣe varuṇasya bhūreḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒दम्। क॒वेः। आ॒दि॒त्यस्य॑। स्व॒ऽराजः॑। विश्वा॑नि। सन्ति॑। अ॒भि। अ॒स्तु॒। म॒ह्ना। अति॑। यः। म॒न्द्रः। य॒जथा॑य। दे॒वः। सु॒ऽकी॒र्तिम्। भि॒क्षे॒। वरु॑णस्य। भूरेः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:28» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:9» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अट्ठाइसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में उपदेशक कैसा हो, इस विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - मैं (यः) जो (मन्द्रः) आनन्द देनेवाला (देवः) विद्वान् (मह्ना) महत्त्व के साथ (अस्तु) होवे उस (स्वराजः) स्वयं शोभायमान (वरुणस्य) श्रेष्ठ (भूरेः) बहुत विद्यावाले (आदित्यस्य) सूर्य के तुल्य वर्त्तमान उपकारी (कवेः) विद्वान् के सम्बन्ध से जो (विश्वानि) सब कर्त्तव्य (सन्ति) हैं (इदम्) इस सब और (सुकीर्त्तिम्) सुन्दर कीर्त्ति को (यजथाय) सत्कार के लिये (अति,अभि,भिक्षे) अत्यन्त सब ओर से माँगता हूँ ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य की किरण घटपटादि पदार्थों को प्रकाशित करती हैं, वैसे विद्वानों के उपदेश श्रोता लोगों के आत्माओं को प्रकाशित करते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथोपदेशकः कीदृशः स्यादित्याह।

अन्वय:

अहं यो मन्द्रो देवो मह्नास्तु तस्य स्वराजो वरुणस्य भूरेरादित्यस्येव वर्त्तमानस्य कवेः सकाशाद्यानि सन्तीदं सर्वं सुकीर्त्तिं यजथायात्यभि भिक्षे ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) (कवेः) विदुषः (आदित्यस्य) सूर्यस्य (स्वराजः) यः स्वयं राजते तस्य (विश्वानि) सर्वाणि (सन्ति) वर्त्तन्ते। अत्र संहितायामिति दीर्घः (अभि) (अस्तु) भवतु (मह्ना) महिम्ना महत्त्वेन (अति) (यः) (मन्द्रः) आनन्दप्रदः (यजथाय) सत्करणाय (देवः) विद्वान् (सुकीर्त्तिम्) (भिक्षे) (वरुणस्य) (भूरेः) बहुविद्यस्य ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽऽदित्यस्य किरणा घटपटादीन् प्रकाशयन्ति तथा विदुषामुपदेशाः श्रोतॄणामात्मनः प्रकाशयन्ति ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात विद्वान, राजा व प्रजा यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्तातील अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे हे जाणले पाहिजे.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी सूर्याची किरणे सर्व पदार्थांना प्रकाशित करतात तसे विद्वानांचे उपदेश श्रोत्यांच्या आत्म्यांना प्रकाशित करतात. ॥ १ ॥