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त्री रो॑च॒ना दि॒व्या धा॑रयन्त हिर॒ण्ययाः॒ शुच॑यो॒ धार॑पूताः। अस्व॑प्नजो अनिमि॒षा अद॑ब्धा उरु॒शंसा॑ ऋ॒जवे॒ मर्त्या॑य॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

trī rocanā divyā dhārayanta hiraṇyayāḥ śucayo dhārapūtāḥ | asvapnajo animiṣā adabdhā uruśaṁsā ṛjave martyāya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्री। रो॒च॒ना। दि॒व्या। धा॒र॒य॒न्त॒। हि॒र॒ण्ययाः॑। शुच॑यः। धार॑ऽपूताः। अस्व॑ऽप्नजः। अ॒नि॒ऽमि॒षाः। अद॑ब्धाः। उ॒रु॒ऽशंसाः॑। ऋ॒जवे॑। मर्त्या॑य॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:27» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:7» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (हिरण्ययाः) तेजस्वी (धारपूताः) विद्या और उत्तम शिक्षा से जिनकी वाणी पवित्र हुई वे (शुचयः) शुद्ध पवित्र (उरुशंसाः) बहुत प्रशंसावाले (अस्वप्नजः) अविद्यारूप निद्रा से रहित विद्या के व्यवहार में जागते हुए (अनिमिषाः) आलस्यरहित और (अदब्धाः) हिंसा करने के न योग्य अर्थात् रक्षणीय विद्वान् लोग (जवे) सरल स्वभाव (मर्त्याय) मनुष्य के लिये (त्री) तीन प्रकार के (दिव्या) शुद्ध दिव्य (रोचना) रुचि योग्य ज्ञान वा पदार्थों को (धारयन्त) धारण करते हैं, वे जगत् के कल्याण करनेवाले हों ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य जीव-प्रकृति और परमेश्वर की तीन प्रकार की विद्या को धारण कर दूसरे को देते, सबको अविद्यारूप निद्रा से उठाके विद्या में जगाते हैं, वे मनुष्यों के मङ्गल करानेवाले होते हैं ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

ये हिरण्यया धारपूताः शुचयः उरुशंसा अस्वप्नजोऽनिमिषा अदब्धा जवे मर्त्याय त्री दिव्या रोचना धारयन्त ते जगत्कल्याणकराः स्युः ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्री) त्रीणि (रोचना) प्रदीपकानि ज्ञानानि (दिव्या) दिव्यानि शुद्धानि (धारयन्त) धरन्ते। अत्राडभावः (हिरण्यया:) ज्योतिर्मयाः (शुचयः) पवित्राः (धारपूताः) येषां विद्यासुशिक्षाभ्यां वाणी पूता पवित्रा ते (अस्वप्नजः) विद्याव्यवहारे जागृता अविद्यानिद्रारहिताः (अनिमिषाः) निमेषालस्यवर्जिताः (अदब्धाः) अहिंसनीयाः (उरुशंसाः) बहुप्रशंसाः (जवे) सरलाय (मर्त्याय) मनुष्याय ॥९॥
भावार्थभाषाः - ये जीवप्रकृतिपरमेश्वराणां त्रिविधां विद्यां धृत्वाऽन्येभ्यो ददति सर्वानविद्यानिद्रात उत्थाप्य विद्यायां जागारयन्ति ते मनुष्याणां मङ्गलकारिणो भवन्ति॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे जीव, प्रकृती व परमेश्वर याबाबत तीन प्रकारच्या विद्या धारण करून दुसऱ्यांना देतात, सर्वांना अविद्यारूपी निद्रेतून जागृत करून विद्या देतात, ती माणसांचे मंगल करणारी असतात. ॥ ९ ॥