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अदि॑ते॒ मित्र॒ वरु॑णो॒त मृ॑ळ॒ यद्वो॑ व॒यं च॑कृ॒मा कच्चि॒दागः॑। उ॒र्व॑श्या॒मभ॑यं॒ ज्योति॑रिन्द्र॒ मा नो॑ दी॒र्घा अ॒भि न॑श॒न्तमि॑स्राः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adite mitra varuṇota mṛḻa yad vo vayaṁ cakṛmā kac cid āgaḥ | urv aśyām abhayaṁ jyotir indra mā no dīrghā abhi naśan tamisrāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अदि॑ते। मित्र॑। वरु॑ण। उ॒त। मृ॒ळ॒। यत्। वः॒। व॒यम्। च॒कृ॒म। कत्। चि॒त्। आगः॑। उ॒रु। अ॒श्या॒म्। अभ॑यम्। ज्योतिः॑। इ॒न्द्र॒। मा। नः॒। दी॒र्घाः। अ॒भि। न॒श॒न्। तमि॑स्राः॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:27» मन्त्र:14 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:8» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अदिते) अखण्डित स्वरूप और विज्ञानवाली न्यायकर्त्री राज्ञी तथा हे (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त (मित्र) सबके सखा (उत) और (वरुण) सबसे उत्तम राजन् आप हमको (मृळ) सुखी करो (यत्) जो (वः) तुम्हारा (कश्चित्) कुछ (उरु) बड़ा (आगः) अपराध (वयम्) हम (चकृम) करें उसको क्षमा करो जिससे (अभयम्) भयरहित (ज्योतिः) प्रकाशयुक्त दिन को (अश्याम्) प्राप्त होऊँ और (नः) हमारी (दीर्घाः) बड़ी (तमिस्राः) रात्री (मा) (न) (नशन्) कटें अर्थात् रात्रि को सुखपूर्वक निर्भय सोवें ॥१४॥
भावार्थभाषाः - जिस देश वा नगर में विदुषी स्त्री स्त्रियों का न्याय करनेवाली और पुरुषों का न्याय करनेवाला विद्वान् पुरुष हो, उस देश वा नगर में दिन रात्री निर्भय होते और विशेषकर चोर आदि के भय से रहित सुखपूर्वक रात्री व्यतीत होती है ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे अदिते इन्द्र मित्रोत वरुण त्वमस्मान् मृळ यद्वः कश्चिदुर्वागो वयं चकृम तत् क्षम्यतां यतोऽभयं ज्योतिरहमश्याम्। नो दीर्घास्तमिस्रा माभिनशन् ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अदिते) अखण्डितस्वरूपविज्ञाने (मित्र) सर्वेषां सुहृत् (वरुण) सर्वोत्कृष्ट (उत) (मृळ) सुखय (यत्) (वः) युष्माकम् (वयम्) (चकृम) कुर्याम। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः (कत्) (चित्) किंचित् (आगः) अपराधम् (उरु) बहु (अश्याम्) प्राप्नुयाम् (अभयम्) भयवर्जितम् (ज्योतिः) प्रकाशयुक्तं दिनम् (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त (मा) निषेधे (नः) अस्माकम् (दीर्घाः) स्थूलाः (अभि) (नशन्) नश्यन्तु (तमिस्राः) रात्रयः ॥१४॥
भावार्थभाषाः - यत्र विदुषी स्त्री स्त्रीणां न्यायकर्त्री पुरुषाणां विद्वान् पुरुषश्च तत्राहोरात्रौ निर्भयौ भवेतां विशेषतो रात्रिश्च सुखेन गच्छति ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या देशात किंवा नगरात स्त्रियांचा न्याय करणारी विदुषी स्त्री व पुरुषांचा न्याय करणारा विद्वान पुरुष असेल त्या देशात किंवा नगरात दिवसा व रात्री चोरांपासून निर्भयतेने जगता येते. विशेष करून रात्र चोरापासून भयरहित सुखाने व्यतीत करता येते. ॥ १४ ॥