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न द॑क्षि॒णा वि चि॑किते॒ न स॒व्या न प्रा॒चीन॑मादित्या॒ नोत प॒श्चा। पा॒क्या॑ चिद्वसवो धी॒र्या॑ चिद्यु॒ष्मानी॑तो॒ अभ॑यं॒ ज्योति॑रश्याम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

na dakṣiṇā vi cikite na savyā na prācīnam ādityā nota paścā | pākyā cid vasavo dhīryā cid yuṣmānīto abhayaṁ jyotir aśyām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न। द॒क्षि॒णा। वि। चि॒कि॒ते॒। न। स॒व्या। न। प्रा॒चीन॑म्। आ॒दि॒त्याः॒। न। उ॒त। प॒श्चा। पा॒क्या॑। चि॒त्। व॒स॒वः॒। धी॒र्या॑। चि॒त्। यु॒ष्माऽनी॑तः। अभ॑यम्। ज्योतिः॑। अ॒श्या॒म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:27» मन्त्र:11 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:8» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (आदित्याः) सूर्यलोक (न) नहीं (दक्षिणा) दक्षिण (न) न (सव्या) उत्तर (न) न (प्राचीनम्) पूर्व (उत) और (न) न (पश्चा) पश्चिम दिशा में भ्रमते हैं (चित्) और जिनके आधार में (वसवः) पृथिवी आदि वसु (चित्) भी वसते हैं जिनको (पाक्या) बुद्धिमान् (धीर्या) धीर विद्वानों में श्रेष्ठजन (विचिकिते) विशेष कर जानता है उनका आश्रय कर (युष्मानीतः) तुम लोगों से प्राप्त हुआ मैं (अभयम्) भयरहित (ज्योतिः) प्रकाशरूप ज्ञान को (अश्याम्) प्राप्त होऊँ ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो जो सूर्य सब दिशाओं में नहीं भ्रमते, जिनके आधार से पृथिवी आदि लोक भ्रमते हैं, उनके विज्ञानपूर्वक परमात्मा को जान के अभयरूप पदको प्राप्त होओ ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह।

अन्वय:

य आदित्या न दक्षिणा न सव्या न प्राचीनं नोत पश्चा भ्रमन्ति यदाधारे चिद्वसवश्चिद्वसन्ति यान् पाक्या धीर्या विचिकिते तदाश्रित्य युष्मानीतश्चिदहमभयं ज्योतिरश्याम् ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (न) निषेधे (दक्षिणा) (वि) (विशेषेण) (चिकिते) जानाति (न) (सव्या) उत्तरा (न) (प्राचीनम्) प्राची दिक् (आदित्याः) सूर्याः (न) (उत) अपि (पश्चा) पश्चिमा (पाक्या) पाकोऽस्यास्तीति पाकी। सुपामिति ड्यादेशः। (चित्) अपि (वसवः) पृथिव्यादयः (धीर्या) धीरेषु विद्वत्सु साधुः। अत्र सुपामित्याकारः। (चित्) अपि (युष्मानीतः) युष्माभिरानीतः (अभयम्) भयवर्जितम् (ज्योतिः) प्रकाशम् (अश्याम्) प्राप्नुयाम् ॥११॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ये सूर्य्याः सर्वासु दिक्षु न भ्रमन्ति यदाधारेण पृथिव्यादयो भ्रमन्ति तद्विज्ञानपुरःसरं परमात्मानं विज्ञायाऽभयं पदं प्राप्नुवन्तु ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जे सूर्य सर्व दिशांमध्ये भ्रमण करीत नाहीत, ज्यांच्या आधारे पृथ्वी इत्यादी लोक भ्रमण करतात त्यांच्या विज्ञानाला जाणून व परमेश्वराला जाणून अभयपद प्राप्त करा. ॥ ११ ॥