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यज॑स्व वीर॒ प्र वि॑हि मनाय॒तो भ॒द्रं मनः॑ कृणुष्व वृत्र॒तूर्ये॑। ह॒विष्कृ॑णुष्व सु॒भगो॒ यथास॑सि॒ ब्रह्म॑ण॒स्पते॒रव॒ आ वृ॑णीमहे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yajasva vīra pra vihi manāyato bhadram manaḥ kṛṇuṣva vṛtratūrye | haviṣ kṛṇuṣva subhago yathāsasi brahmaṇas pater ava ā vṛṇīmahe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यज॑स्व। वी॒र॒। प्र। वि॒हि॒। म॒ना॒य॒तः। भ॒द्रम्। मनः॑। कृ॒णु॒ष्व॒। वृ॒त्र॒ऽतूर्ये॑। ह॒विः। कृ॒णु॒ष्व॒। सु॒ऽभगः॑। यथा॑। अस॑सि। ब्रह्म॑णः। पतेः॑। अवः॑। आ। वृ॒णी॒म॒हे॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:26» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:5» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वीर) शुभगुणों में व्याप्त होनेवाले विद्यार्थिजन तू (मनायतः) अपने को मनन का आचरण करते हुए (ब्रह्मणः) वेदादि शास्त्रों की (पतेः) पालना करनेवाले (मनायतः) अपने को मनन विचार का आचरण करनेवाले जन से विद्याओं को (प्र,विहि) अच्छे प्रकार प्राप्त हो धर्म का (यजस्व) सङ्ग कर (मनः) मन को (भद्रम्) कल्याणकारी (कृणुष्व) कर (सुभगः) सुन्दर ऐश्वर्यवाला हुआ (वृत्रतूर्ये) शत्रुओं का जहाँ वध होता उस सङ्ग्राम में (हविः) दान को (कृणुष्व) कर (यथा) जैसे तू (अससि) हो वैसे हम लोग (अवः) रक्षा को (आ,वृणीमहे) अच्छे प्रकार स्वीकार करें ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य अपने मनों को अतिकल्याणकारी मार्ग में प्रवृत्त कर सब कार्यों को सिद्ध करते हैं, वे कृतकृत्य होते हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे वीर त्वं ब्रह्मणस्पतेर्मनायतो जनाद्विद्याः प्रविहि। धर्मं यजस्व भद्रं मनः कृणुष्व सुभगः सन् वृत्रतूर्ये हविः कृणुष्व यथा त्वमससि तथा वयमव आ वृणीमहे ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यजस्व) सङ्गच्छस्व (वीर) शुभगुणेषु व्यापनशील (प्र) (विहि) प्राप्नुहि। अत्र वर्णव्यत्ययेन ह्रस्वम् (मनायतः) आत्मनो मन आचरतः (भद्रम्) कल्याणकरम् (मनः) (कृणुष्व) (वृत्रतूर्य्ये) शत्रुवधे (हविः) दानम् (कृणुष्व) (सुभगः) शोभनैश्वर्य्यः (यथा) (अससि) स्याः (ब्रह्मणः) (पतेः) (अवः) रक्षणम् (आ) (वृणीमहे) ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः स्वकीयानि मनांसि कल्याणतमे मार्गे प्रवर्त्त्य सर्वाणि कार्य्याणि साध्नुवन्ति, ते कृतकृत्या भवन्ति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जी माणसे आपल्या मनाला कल्याणकारी मार्गात प्रवृत्त करून सर्व कार्ये सिद्ध करतात ती कृतकृत्य होतात. ॥ २ ॥