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तस्मा॑ अर्षन्ति दि॒व्या अ॑स॒श्चतः॒ स सत्व॑भिः प्रथ॒मो गोषु॑ गच्छति। अनि॑भृष्टतविषिर्ह॒न्त्योज॑सा॒ यंयं॒ युजं॑ कृणु॒ते ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tasmā arṣanti divyā asaścataḥ sa satvabhiḥ prathamo goṣu gacchati | anibhṛṣṭataviṣir hanty ojasā yaṁ-yaṁ yujaṁ kṛṇute brahmaṇas patiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तस्मै॑। अ॒र्ष॒न्ति॒। दि॒व्याः। अ॒स॒श्चतः॑। सः। सत्व॑ऽभिः। प्र॒थ॒मः। गोषु॑। ग॒च्छ॒ति॒। अनि॑भृष्टऽतविषिः। ह॒न्ति॒। ओज॑सा। यम्ऽय॑म्। युज॑म्। कृ॒णु॒ते। ब्रह्म॑णः। पतिः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:25» मन्त्र:4 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:4» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब कौन विजयी होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (प्रथमः) मुख्य (अनिभृष्टतविषिः) जिसकी सेना निरन्तर भ्रष्ट नहीं होती वह (ब्रह्मणः,पतिः) ब्राह्मणादि वर्ण व्यवस्था का रक्षक (सत्वभिः) पदार्थों के साथ (गोषु) पृथिवी में (गच्छति) जाता है (ओजसा) बल पराक्रम से शत्रुओं को (हन्ति) मारता (सः) वह (यंयम्) जिस-जिसको (युजम्) कार्य में नियुक्त (कृणुते) करता (तस्मै) उसके लिये (दिव्याः) शुद्ध (असश्चतः) जो किसी व्यसन में आसक्त नहीं, ऐसे कल्याणकारी वीर पुरुष (अर्षन्ति) प्राप्त होते हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - वे ही लोग विजयी होते हैं, जो सब बलों और साधन उपसाधनों से तथा विद्या से युक्त होते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ के विजयिनो भवन्तीत्याह।

अन्वय:

यः प्रथमोऽनिभृष्टतविषिर्ब्रह्मणस्पतिः सत्वभिस्सह गोषु गच्छत्योजसा शत्रून् हन्ति स यंयं युजं कृणुते तस्मै दिव्या असश्चतो भद्रा वीरा अर्षन्ति प्राप्नुवन्ति ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तस्मै) (अर्षन्ति) प्राप्नुवन्ति। अत्र विकरणव्यत्ययेन शप् (दिव्याः) शुद्धाः (असश्चतः) असज्यमानाः (सः) (सत्वभिः) पदार्थैः सह (प्रथमः) (गोषु) पृथिवीषु (गच्छति) (अनिभृष्टतविषिः) न नितरां भृष्टा तविषी सेना यस्य सः (हन्ति) (ओजसा) पराक्रमेण (यंयम्) (युजम्) (कृणुते) (ब्रह्मणः,पतिः) ॥४॥
भावार्थभाषाः - त एव विजयिनः सन्ति ये सर्वैर्बलैस्साधनोपसाधनैर्विद्यया च युक्ता भवन्ति ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे सर्व बल, साधन उपसाधनांनी व विद्येने युक्त असतात, तेच लोक विजयी होतात. ॥ ४ ॥