इन्धा॑नो अ॒ग्निं व॑नवद्वनुष्य॒तः कृ॒तब्र॑ह्मा शूशुवद्रा॒तह॑व्य॒ इत्। जा॒तेन॑ जा॒तमति॒ स प्र स॑र्सृते॒ यंयं॒ युजं॑ कृणु॒ते ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑॥
indhāno agniṁ vanavad vanuṣyataḥ kṛtabrahmā śūśuvad rātahavya it | jātena jātam ati sa pra sarsṛte yaṁ-yaṁ yujaṁ kṛṇute brahmaṇas patiḥ ||
इन्धा॑नः। अ॒ग्निम्। व॒न॒व॒त्। व॒नु॒ष्य॒तः। कृ॒तऽब्र॑ह्मा। शू॒शु॒व॒त्। रा॒तऽह॑व्यः। इत्। जा॒तेन॑। जा॒तम्। अति॑। सः। प्र। स॒र्सृ॒ते॒। यम्ऽय॑म्। युज॑म्। कृ॒णु॒ते। ब्रह्म॑णः। पतिः॑॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब पच्चीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके आदि में बिजली का वर्णन करते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ विद्युद्वर्णनमाह।
यः कृतब्रह्मेन्धानो रातहव्यो ब्रह्मणस्पतिर्जातेन जातमति सर्सृते यं यं युजं प्रकृणुते स इद्वनवद्वनुष्यतोऽग्निं प्रशूशुवत् ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)x