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यो नन्त्वा॒न्यन॑म॒न्न्योज॑सो॒ताद॑र्दर्म॒न्युना॒ शम्ब॑राणि॒ वि। प्राच्या॑वय॒दच्यु॑ता॒ ब्रह्म॑ण॒स्पति॒रा चावि॑श॒द्वसु॑मन्तं॒ वि पर्व॑तम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo nantvāny anaman ny ojasotādardar manyunā śambarāṇi vi | prācyāvayad acyutā brahmaṇas patir ā cāviśad vasumantaṁ vi parvatam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। नन्त्वा॑नि। अन॑मत्। नि। ओज॑सा। उ॒त। अ॒द॒र्दः॒। म॒न्युना॑। शम्ब॑राणि। वि। प्र। अ॒च्या॒व॒य॒त्। अच्यु॑ता। ब्रह्म॑णः। पतिः॑। आ। च॒। अवि॑शत्। वसु॑ऽमन्तम्। वि। पर्व॑तम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:24» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:1» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (ब्रह्मणस्पतिः) बड़ी प्रजा का रक्षक राजसेना का अध्यक्ष (नन्त्वानि) नमने योग्य को (नि,अनमत्) निरन्तर नये जैसे सूर्य्य (अच्युता) नाशरहित (शम्बराणि) मेघसम्बन्धी बादलों को (व्यदर्दः) विशेष कर वार-वार विदीर्ण करता (उत) और (पर्वतम्) मेघ को (प्राच्यावयत्) गिराता है वह वैसे (ओजसा) बल से तथा (मन्युना) क्रोध से शत्रु को गिराये वा विदीर्ण करे (च) और (वसुमन्तम्) उत्तम धन को पहुँचाने हारे देश को (वि,आ,अविशत्) अच्छे प्रकार विशेष कर प्राप्त होवे ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो राजा और राजजन विद्वान् सत्कर्मी लोगों का सत्कार करते और दुष्ट कर्मवालों को दण्ड देते हैं, वे सूर्य के तुल्य पृथिवी पर सुशोभित होते हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

यो ब्रह्मणस्पती राजसेनाधीशो नन्त्वानि न्यनमद्यथा सूर्य्योऽच्युता शम्बराणि व्यदर्दः उतापि पर्वतं प्राच्यावयत्तथौजसा मन्युना शत्रुं प्राच्यावयेद्विदृणियाद्वा वसुमन्तं च व्याविशत् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) विद्वान् (नन्त्वानि) नमनीयानि नमस्कारार्हाणि (अनमत्) नमतु (नि) नितरा (ओजसा) बलेन (उत) अपि (अदर्दः) पुनः पुनर्भृशं विदारयति (मन्युना) क्रोधेन (शम्बराणि) शम्बरस्य मेघस्य सम्बन्धनि अभ्राणि (वि) (प्र) (अच्यावयत्) निपातयति (अच्युता) नाशरहितानि (ब्रह्मणस्पतिः) बृहत्या प्रजायाः पालकः (आ) (च) (अविशत्) आविशति (वसुमन्तम्) प्रशस्तधनप्रापकं देशम् (वि) (पर्वतम्) मेघम् ॥२॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसो राजजनाः सत्कर्मिणः सत्कुर्वन्ति दुष्कर्मिणो दण्डयन्ति ते सूर्य्यवत्पृथिव्यां राजन्ते ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे राजे व राजपुरुष विद्वान सत्कर्मी लोकांचा सत्कार करतात व दुष्ट कर्म करणाऱ्यांना दंड देतात ते सूर्याप्रमाणे पृथ्वीवर सुशोभित होतात. ॥ २ ॥