योऽव॑रे वृ॒जने॑ वि॒श्वथा॑ वि॒भुर्म॒हामु॑ र॒ण्वः शव॑सा व॒वक्षि॑थ। स दे॒वो दे॒वान्प्रति॑ पप्रथे पृ॒थु विश्वेदु॒ ता प॑रि॒भूर्ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑॥
yo vare vṛjane viśvathā vibhur mahām u raṇvaḥ śavasā vavakṣitha | sa devo devān prati paprathe pṛthu viśved u tā paribhūr brahmaṇas patiḥ ||
यः। अव॑रे। वृ॒जने॑। वि॒श्वऽथा॑। वि॒ऽभुः म॒हाम्। ऊँ॒ इति॑। र॒ण्वः। शव॑सा। व॒वक्षि॑थ। सः। दे॒वः। दे॒वान्। प्रति॑। प॒प्र॒थे॒। पृ॒थु। विश्वा॑। इत्। ऊँ॒ इति॑। ता। प॒रि॒ऽभूः। ब्रह्म॑णः। पतिः॑॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्यों को क्या कर्त्तव्य है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में कहा है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह।
यो विश्वथाऽवरे वृजने रण्वो विभुः परिभूर्ब्रह्मणस्पतिरस्ति स देवो शवसा महाम् देवान् प्रति पप्रथे। पृथु विश्वा ता तानि पप्रथे तमिदु यूयं ववक्षिथ ॥११॥