वांछित मन्त्र चुनें

त्वं नो॑ गो॒पाः प॑थि॒कृद्वि॑चक्ष॒णस्तव॑ व्र॒ताय॑ म॒तिभि॑र्जरामहे। बृह॑स्पते॒ यो नो॑ अ॒भि ह्वरो॑ द॒धे स्वा तं म॑र्मर्तु दु॒च्छुना॒ हर॑स्वती॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ no gopāḥ pathikṛd vicakṣaṇas tava vratāya matibhir jarāmahe | bṛhaspate yo no abhi hvaro dadhe svā tam marmartu ducchunā harasvatī ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। नः॒। गो॒ऽपाः। प॒थि॒ऽकृत्। वि॒ऽच॒क्ष॒णः। तव॑। व्र॒ताय॑। म॒तिऽभिः॑। ज॒रा॒म॒हे॒। बृह॑स्पते। यः। नः॒। अ॒भि। ह्वरः॑। द॒धे। स्वा। तम्। म॒र्म॒र्तु॒। दु॒च्छुना॑। हर॑स्वती॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:23» मन्त्र:6 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:30» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (बृहस्पते) बहुत सत्य का प्रचार करनेवाले (यः) जो (नः) हमलोगों के ऊपर (ह्वरः) क्रोध किया जाता वह (दुच्छुना) दुष्ट कुत्ते से जैसे-तैसे (तम्) उसको (मर्मर्त्तु) निरन्तर प्राप्त हो जो (स्वा) अपनी (हरस्वती) बहुतों को हरने का शील रखनेवाली सेना उस विषय को (अभि,दधे) सब ओर से धारण करे उस सेना से जो (नः) हम लोगों के (गोपाः) रक्षा करने (पथिकृत्) सकल सुकृत मार्ग का प्रचार करने वा (विचक्षणः) विविध सत्योपदेश करनेवाले (त्वम्) आप हैं उन (तव) आपके (व्रताय) शील के लिये (मतिभिः) मेधाओं के साथ हम लोग (जरामहे) स्तुति करते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - जिनका मार्ग प्रकाश करने और उपदेश करनेवाला परमात्मा विद्वान् होता है, जो सत्पुरुषों के सङ्ग के प्रीति करनेवाले वर्त्तमान हैं, उनको क्रोध आदि दुर्गुण नहीं प्राप्त होते हैं ॥६॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे बृहस्पते यो नोऽस्माकमुपरि ह्वरः क्रियते स दुच्छुनेव तं मर्मर्त्तु या स्वा हरस्वती तमभि दधे दधातु तया यो नो गोपाः पथिकृद्विचक्षणस्त्वमसि तदस्य तव व्रताय मतिभिः सह वयं जरामहे ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (नः) अस्माकम् (गोपाः) रक्षकः (पथिकृत्) सकलसुकृतमार्गप्रचारकः (विचक्षणः) यो विविधान् सत्योपदेशाञ्चष्टे (तव) (व्रताय) शीलाय (मतिभिः) मेधाभिः सह (जरामहे) स्तूमहे (बृहस्पते) बृहत्सत्यप्रचारक (यः) (नः) अस्माकम् (अभि) (ह्वरः) क्रोधः। ह्वर इति क्रोधना० निघं० २। १३ (दधे) दधाति (स्वा) स्वकीया (तम्) (मर्मर्त्तु) भृशं प्राप्नोतु (दुच्छुना) दुष्टेन शुनेव (हरस्वती) बहुहरणशीला सेना ॥६॥
भावार्थभाषाः - येषां मार्गप्रकाशक उपदेशकः परमात्मा विद्वान् भवति ये सत्पुरुषसङ्गप्रिया वर्त्तन्ते तान् क्रोधाद्या दुर्गुणा नाप्नुवन्ति ॥६॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्यांचा मार्गदर्शक, उपदेशक परमात्मा व विद्वान असतो तसेच जे सत्पुरुषांशी प्रीतीने वागतात त्यांच्याजवळ क्रोध इत्यादी गुण नसतात. ॥ ६ ॥