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सु॒नी॒तिभि॑र्नयसि॒ त्राय॑से॒ जनं॒ यस्तुभ्यं॒ दाशा॒न्न तमंहो॑ अश्नवत्। ब्र॒ह्म॒द्विष॒स्तप॑नो मन्यु॒मीर॑सि॒ बृह॑स्पते॒ महि॒ तत्ते॑ महित्व॒नम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sunītibhir nayasi trāyase janaṁ yas tubhyaṁ dāśān na tam aṁho aśnavat | brahmadviṣas tapano manyumīr asi bṛhaspate mahi tat te mahitvanam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒नी॒तिऽभिः॑। न॒य॒सि॒। त्राय॑से। जन॑म्। यः। तुभ्य॑म्। दाशा॑त्। न। तम्। अंहः॑। अ॒श्न॒व॒त्। ब्र॒ह्म॒ऽद्विषः॑। तप॑नः। म॒न्यु॒ऽमीः। अ॒सि॒। बृह॑स्पते। महि॑। तत्। ते॒। म॒हि॒ऽत्व॒नम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:23» मन्त्र:4 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:29» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वान् और ईश्वर विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (बृहस्पते) बड़ों की पालना करनेवाले ईश्वर वा विद्वान् आप (सुनीतिभिः) उत्तमधर्मवाले न्याय मार्गों से जिस (जनम्) जन को (नयसि) पहुँचाते हो और (त्रायसे) रक्षा करते हो (यः) जो (तुभ्यम्) तुम्हारे लिये (आत्मा) (दाशात्) देता है (तम्) उसको (अंहः) पाप (न,अश्नवत्) नहीं प्राप्त होता जो तुम (ब्रह्मद्विषः) वेद और ईश्वर के विरोधियों पर (तपनः) ताप करनेवाले (मन्युमीः) क्रोध का मान करनेवाले (असि) हैं (ते) आपके (तत्) उस (महित्वनम्) बडप्पन की हम लोग प्रशंसा करें ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सत्यभाव से जगदीश्वर वा आप्त विद्वान् के सम्बन्ध में अपने आत्मा को चलाते हैं, उनको जगदीश्वर वा धार्मिक विद्वान् पापाचरण से निवृत्त कर शुभ गुण-कर्म-स्वभावों से युक्त कर पवित्र उत्पन्न करता है और जो वेद वा ईश्वर के विरोधी पापाचारी हैं, उनको अधोगति को पहुँचाता है, यही इन दोनों की उपासना और संग से लाभ होता है ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वदीश्वरविषयमाह।

अन्वय:

हे बृहस्पते त्वं सुनीतिभिर्यजनं नयसि त्रायसे यस्तुभ्यमात्मादाशात्तमंहो नाश्नवद्यस्त्वं ब्रह्माद्विष उपरि तपनो मन्युमीरसि तस्य ते तव तन्महित्वनं वयं प्रशंसेम ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सुनीतिभिः) सुष्ठु धर्मैर्न्यायमार्गैः (नयसि) (आयसे) (जनम्) जिज्ञासुं मनुष्यम् (यः) (तुभ्यम्) (दाशात्) ददति (न) निषेधे (तम्) (अंहः) पापम् (अश्नवत्) प्राप्नोति (ब्रह्मद्विषः) वेदेश्वरविरोधिनः (तपनः) तापकृत् (मन्युमीः) यो मन्युं मिनोति सः (असि) भवसि (बृहस्पते) बृहतां पालकेश्वर विद्वन् वा (महि) महत् (तत्) (ते) तव (महित्वनम्) महिमा ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या सत्यभावेन जगदीश्वरस्याप्तस्य विदुषो वा स्वात्मानं चालयन्ति तान् जगदीश्वरो धार्मिको विद्वान् वा पापाचरणान्निवर्त्य शुभगुणकर्मस्वाभावैर्युक्तान् कृत्वा पवित्रान्जनयति। ये च वेदेश्वरद्विषः पापाचारास्तानधोगतिं नयति। अयमेवानयोरुपासनसङ्गाभ्यां लाभो जायते ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ -जी माणसे सत्य जाणून, ईश्वर, आप्त व विद्वानांच्या साह्याने स्वतःची वर्तणूक ठेवतात, त्यांना परमेश्वर धार्मिक, विद्वान बनवितो किंवा पापाचरणापासून निवृत्त करतो व शुभगुणकर्मस्वभावाचा बनवून पवित्र करतो व जे वेद व ईश्वरविरोधी, पापाचरणी आहेत त्यांना अधोगतीला पोचवितो. हाच उपासना व संगतीने लाभ होतो. ॥ ४ ॥