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दे॒वाश्चि॑त्ते असुर्य॒ प्रचे॑तसो॒ बृह॑स्पते य॒ज्ञियं॑ भा॒गमा॑नशुः। उ॒स्राइ॑व॒ सूर्यो॒ ज्योति॑षा म॒हो विश्वे॑षा॒मिज्ज॑नि॒ता ब्रह्म॑णामसि॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

devāś cit te asurya pracetaso bṛhaspate yajñiyam bhāgam ānaśuḥ | usrā iva sūryo jyotiṣā maho viśveṣām ij janitā brahmaṇām asi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दे॒वाः। चि॒त्। ते॒। अ॒सु॒र्य॒। प्रऽचे॑तसः। बृह॑स्पते। य॒ज्ञिय॑म्। भा॒गम्। आ॒न॒शुः॒। उ॒स्राःऽइ॑व। सूर्यः॑। ज्योति॑षा। म॒हः। विश्वे॑षाम्। इत्। ज॒नि॒ता। ब्रह्म॑णाम्। अ॒सि॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:23» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:29» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (असुर्य्य) प्रवास रहितों में साधु (बृहस्पते) बड़ी वाणी के पति जिस (प्रचेतसः) प्रकृष्ट ज्ञानवाले (ते) आपके (यज्ञियम्) यज्ञ सम्बन्धि (भागम्) भाग को (सूर्य्यः) सूर्य्य (ज्योतिषा) प्रकाश से (उस्राइव) किरणों के समान (देवाः) विद्वान् जन (चित्) निश्चय से (आनशुः) प्राप्त होते हैं जो आप (महः) महात्मा जन (विश्वेषाम्) समस्त लोक और (ब्रह्मणाम्) धनों के (जनिता) उत्पादन करनेवाले (इत्) ही (असि) हैं सो हम लोगों को सदा सेवन करने योग्य हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो तुम जो प्राण का प्राण सूर्य्य के समान आप ही प्रकाशमान और महात्माओं में महात्मा परमेश्वर है, उसी को सेओ ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे असुर्य्य बृहस्पते यस्य प्रचेतसस्ते यज्ञियं भागं सूर्य्यो ज्योतिषोस्रा इव देवाश्चिदानशुर्यस्त्वं महो विश्वेषां ब्रह्मणां जनितेदसि सोऽस्माभिः सततं सेवनीयः ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) विद्वांसः (चित्) अपि (ते) तव (असुर्य) असुरेषु प्रवासरहितेषु साधो (प्रचेतसः) प्रकृष्टं चेतो ज्ञानं यस्य तस्य (बृहस्पते) बृहत्या वाचः पालकः (यज्ञियम्) यज्ञसम्बन्धिनम् (भागम्) (आनशुः) प्राप्नुवन्ति (उस्राइव) किरणानिव (सूर्य्यः) सविता (ज्योतिषा) प्रकाशेन (महः) महताम् (विश्वेषाम्) सर्वेषां लोकानाम् (इत्) एव (जनिता) उत्पादकः (ब्रह्मणाम्) धनानाम् (असि) ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यूयं प्राणस्य प्राणः सूर्य्यवत्स्वप्रकाशः महतां महान् परमेश्वरोऽस्ति तमेव भजत ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जो प्राणांमध्ये प्राण, सूर्याप्रमाणेच स्वतःही प्रकाशमान आहे व महात्म्यांमध्ये महात्मा परमेश्वर आहे, त्याचेच सेवन करा. ॥ २ ॥