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ब्रह्म॑णस्पते॒ त्वम॒स्य य॒न्ता सू॒क्तस्य॑ बोधि॒ तन॑यं च जिन्व। विश्वं॒ तद्भ॒द्रं यदव॑न्ति दे॒वा बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

brahmaṇas pate tvam asya yantā sūktasya bodhi tanayaṁ ca jinva | viśvaṁ tad bhadraṁ yad avanti devā bṛhad vadema vidathe suvīrāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ब्रह्म॑णः। प॒ते॒। त्वम्। अ॒स्य। य॒न्ता। सु॒ऽउ॒क्तस्य॑। बो॒धि॒। तन॑यम्। च॒। जि॒न्व॒। विश्व॑म्। तत्। भ॒द्रम्। यत्। अव॑न्ति। दे॒वाः। बृ॒हत्। व॒दे॒म॒। वि॒दथे॑। सु॒ऽवीराः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:23» मन्त्र:19 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:32» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:19


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ब्रह्मणस्पते) ब्रह्माण्ड की पालना करने हारे (त्वम्) आप (अस्य,सूक्तस्य) जो यह सुन्दरता से कहा जाता इसके (यन्ता) नियन्ता होते हुए (तनयम्) संतान के समान (बोधि) जानो (च) और इस (विश्वम्) सब को (जिन्व) प्रसन्न करो तथा (देवाः) विद्वान् जन (यत्) जिस (भद्रम्) कल्याण करनेवाले की (अवन्ति) रक्षा करते हैं (तत्) उस (बृहत्) बहुत (विदथे) संग्राम में (सुवीराः) अच्छे वीरोंवाले हम लोग (वदेम) कहें ॥१९॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर ने जो रक्षितव्य कहा है, उसकी अच्छे प्रकार रक्षा कर मनुष्यों को बहुत सुख पाना चाहिये। जैसे ईश्वर समस्त जगत् की नियमपूर्वक रक्षा करता है, वैसे विद्वानों को भी सबकी रक्षा करनी चाहिये ॥१९॥ इस सूक्त में ईश्वरादि के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्तार्थ के साथ संगति है, यह जानना चाहिये ॥ यह तेईसवाँ सूक्त और बत्तीसवाँ वर्ग तथा छठा अध्याय समाप्त हुआ॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

ज्ञान द्वारा 'भद्र जीवन'

पदार्थान्वयभाषाः - १. हे (ब्रह्मणस्पते) = ज्ञान के स्वामिन् प्रभो ! (त्वम्) = आप ही (अस्य सूक्तस्य) = इस सूक्त के उत्तम ज्ञानमयी वाणी के (यन्ता) = प्राप्त करानेवाले हैं। (बोधि) = आप हमारा भी ध्यान करिए। (च) = और (तनयं जिन्व) = आपके सन्तानरूप हमको प्रीणित करिए। आपने ही तो हमें ज्ञान देना है। २. आपसे ज्ञान प्राप्त करनेवाले (देवा:) = देववृत्ति के पुरुष (यद् अवन्ति) = जिस बात का अपने में रक्षण करते हैं (विश्वं तद् भद्रम्) = वह सब भद्र ही है। उनका जीवन उत्तम बातों से ही परिपूर्ण होता है । अतः हम भी (सुवीराः) = उत्तम वीर बनकर विदथे ज्ञानयज्ञों में (बृहद् वदेम) = खूब ही आपके स्तोत्रों का उच्चारण करें। आपका स्तवन करते हुए हम देव बनें। देव बनकर अपने में शुभ का धारण करें। इस प्रकार अपने जीवन को भद्र बनानेवाले हों ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु ही ज्ञान देते हैं-ज्ञान देकर वे हमारे जीवन को भद्र बनाते हैं । सम्पूर्ण सूक्त प्रभु का स्तवन करता हुआ प्रभु से जीवनयात्रा की निर्विघ्न पूर्ति के लिए प्रार्थना करता है। उसी के लिए ज्ञान, शक्ति, धन आदि की याचना करता है। अगले सूक्त का भी यही विषय है। प्रस्तुत सूक्त का अन्तिम मन्त्र अगले सूक्त का भी अन्तिम मन्त्र है।
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे ब्रह्मणस्पते त्वमस्य सूक्तस्य यन्ता सँस्तनयं बोधि। एतत् विश्वं च जिन्व देवा यद्भद्रमवन्ति तद्बृहद्विदथे सुवीरा वयं वदेम ॥१९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ब्रह्मणः) ब्रह्माण्डस्य (पते) पालक (त्वम्) (अस्य) (यन्ता) नियन्ता (सूक्तस्य) यः सुष्ठूच्यते तस्य (बोधि) बुध्यस्व (तनयम्) सन्तानमिव (च) (जिन्व) प्रीणीहि (विश्वम्) सर्वम् (तत्) (भद्रम्) कल्याणकरम् (यत्) (अवन्ति) रक्षन्ति (देवाः) विद्वांसः (बृहत्) (वदेम) (विदथे) (सुवीराः) ॥१९॥
भावार्थभाषाः - ईश्वरेण यद्रक्षितव्यमुक्तं तत्संरक्ष्य मनुष्यैर्बृहत्सुखं प्राप्तव्यम्। यथेश्वरोऽखिलं जगन्नियतं रक्षति तथा विद्वद्भिरपि सर्वं संरक्ष्यम् ॥१९॥ अस्मिन् सूक्ते ईश्वरादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति त्रयोविंशं सूक्तं द्वात्रिंशो वर्गः षष्ठोऽध्यायश्च समाप्तः ॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Brahmanaspati, lord protector and sustainer of the universe, you are the hero as well as creator of this song of Divinity which you graciously know and accept as your very child, and bless your creation with life and joy, all that good of entire humanity and the world which the divinities protect and promote, so that we, brave and blest with the brave, in our acts of yajnic piety, may celebrate your gifts highly and ecstatically.
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आचार्य धर्मदेव विद्या मार्तण्ड

The Greatness of God is explained.

अन्वय:

O Great God ! you are the Protector of the universe and control the beautiful adoration. You are dear to us like father and make the whole world happy. With your brave soldiers in the battle-field, you always side with those who are defenders of the learned persons for their welfare.

भावार्थभाषाः - The human beings should seek happiness only by protecting the creation of God, which is essential for the ideal living. As God protects the whole universe, the learned person should also do .likewise.
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ -ज्याचे रक्षण करावे असे ईश्वराने म्हटले आहे, त्याचे चांगल्याप्रकारे रक्षण करून माणसांनी खूप सुख प्राप्त करावे. जसा ईश्वर सर्व जगाचे नियमपूर्वक रक्षण करतो तसे विद्वानांनीही सर्वांचे रक्षण करावे. ॥ १९ ॥