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भरे॑षु॒ हव्यो॒ नम॑सोप॒सद्यो॒ गन्ता॒ वाजे॑षु॒ सनि॑ता॒ धनं॑धनम्। विश्वा॒ इद॒र्यो अ॑भिदि॒प्स्वो॒३॒॑मृधो॒ बृह॒स्पति॒र्वि व॑वर्हा॒ रथाँ॑इव॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bhareṣu havyo namasopasadyo gantā vājeṣu sanitā dhanaṁ-dhanam | viśvā id aryo abhidipsvo mṛdho bṛhaspatir vi vavarhā rathām̐ iva ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भरे॑षु। हव्य॑। नम॑सा। उ॒प॒ऽसद्यः॑। गन्ता॑। वाजे॑षु। सनि॑ता। धन॑म्ऽधनम्। विश्वाः॑। इत्। अ॒र्यः। अ॒भि॒ऽदि॒प्स्वः॑। मृधः॑। बृह॒स्पतिः॑। वि। व॒व॒र्ह॒। रथा॑न्ऽइव॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:23» मन्त्र:13 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:31» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:13


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (हव्यः) ग्रहण करने और (नमसा) सत्कार से (उपसद्यः) प्राप्त होने योग्य तथा (गन्ता) गमन करने (सनिता) विभाग करने (बृहस्पतिः) और पूज्यों की रक्षा करनेवाला (अर्य्यः) स्वामी (भरेषु) पुष्टियों और (वाजेषु) सङ्ग्रामों में (धनन्धनम्) धन-धन को बढ़ाता वा (रथानिव) रथों के समान (विश्वाः) समस्त (इत्) उन्हीं क्रियाओं को कि (अभिदिप्स्वः) जिनमें दम्भ की इच्छा करनेवाले विद्यमान तथा (मृधः) सङ्ग्रामों को (वि,ववर्ह) नहीं बढ़ाता है, वह राज्य करने को योग्य होता है ॥१३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो गुण-कर्म और स्वभावों से विजय को प्राप्त होते हुए विमानादि यानों के तुल्य शीघ्र ऐश्वर्य को प्राप्त होकर समस्त सत्कर्मों में विभाग कर धनादि पदार्थों को देते हैं, वे न्यायाधीश होने के योग्य हैं ॥१३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

यो हव्यो नमसोपसद्यो गन्ता सनिता बृहस्पतिरर्यो भरेषु वाजेषु धनन्धनं ववर्ह रथानिव विश्वा इदभिदिप्स्वो मृधो विववर्ह स इद्राज्यं कर्त्तुमर्हति ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (भरेषु) पोषणेषु (हव्यः) आदातुमर्हः (नमसा) सत्कारेण (उपसद्यः) प्राप्तुं योग्यः (गन्ता) (वाजेषु) सङ्ग्रामेषु (सनिता) विभाजकः (धनन्धनम्) (विश्वाः) सर्वाः (इत्) एव (अर्य्यः) स्वामी (अभिदिप्स्वः) अभितो दिप्सवो दम्भितुमिच्छवो यासु ताः (मृधः) सङ्ग्रामान् (बृहस्पतिः) पूज्यपालकः (वि) (ववर्ह) वर्द्धयति (रथानिव) ॥१३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये गुणकर्मस्वभावैर्विजयमाना विमानादियानवत्सद्य ऐश्वर्यं प्राप्य सर्वेषु सत्कर्मसु विभज्य धनादिपदार्थान्प्रददति ते न्यायाधीशा भवितुमर्हन्ति ॥१३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे गुण, कर्म स्वभावाने विजय प्राप्त करून विमान इत्यादी यानाप्रमाणे शीघ्र ऐश्वर्य प्राप्त करतात व सत्कर्मात संपूर्ण धन खर्च करतात, ते न्यायाधीश होण्यायोग्य असतात. ॥ १३ ॥