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अदे॑वेन॒ मन॑सा॒ यो रि॑ष॒ण्यति॑ शा॒सामु॒ग्रो मन्य॑मानो॒ जिघां॑सति। बृह॑स्पते॒ मा प्रण॒क्तस्य॑ नो व॒धो नि क॑र्म म॒न्युं दु॒रेव॑स्य॒ शर्ध॑तः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adevena manasā yo riṣaṇyati śāsām ugro manyamāno jighāṁsati | bṛhaspate mā praṇak tasya no vadho ni karma manyuṁ durevasya śardhataḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अदे॑वेन। मन॑सा। यः। रि॒ष॒ण्यति॑। शा॒साम्। उ॒ग्रः। मन्य॑मानः। जिघां॑सति। बृह॑स्पते। मा। प्रण॑क्। तस्य॑। नः॒। व॒धः। नि। क॒र्म॒। म॒न्युम्। दुः॒ऽएव॑स्य। शर्ध॑तः॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:23» मन्त्र:12 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:31» मन्त्र:2 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अगले मन्त्र में राज विषय को कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (बृहस्पते) बड़े राज्य के पालनेवाले (यः) जो (शासाम्) शासना करनेवालियों का (उग्रः) भयङ्कर (मन्यमानः) अभिमानी (अदेवेन) अशुद्ध (मनसा) मनसे (रिषण्यति) हिंसा करने को अपने से चाहता है वा (जिघांसति) साधारण मारने की इच्छा करता है (तस्य) उसके (मन्युम्) क्रोध को (शर्द्धत) बलवत्ता से सहते हुए (दुरेवस्य) दुःख से प्राप्त होने योग्य का (वधः) नाश (मा,प्रणक्) मत नष्ट हो (नः) हमारा (कर्म) कर्म (नि) मत निरन्तर नष्ट हो ॥१२॥
भावार्थभाषाः - जो राज्यशासन करते हैं, वे निर्बुद्धि हिंसकों को वश करें, यदि वश में न आवें, तो इनको बलात्कारपूर्वक मारें, जिससे न्याय का नाश न हो ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयमाह।

अन्वय:

हे बृहस्पते यः शासामुग्रो मन्यमानो देवेन मनसा रिषण्यति जिघांसति तस्य मन्युं शर्द्धतो दुरेवस्य वधो मा प्रणक् नोऽस्माकं कर्म मा नि प्रणक् ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अदेवेन) अशुद्धेन (मनसा) (यः) (रिषण्यति) आत्मना हिंसितुमिच्छति (शासाम्) शासनकर्त्रीणाम् (उग्रः) भयंकरः (मन्यमानः) अभिमानी (जिघांसति) हिंसितुमिच्छति (बृहस्पते) बृहतो राज्यस्य पालक (मा) (प्रणक्) नष्टो भवेत् (तस्य) (नः) अस्माकम् (वधः) (नि) (कर्म) (मन्युम्) क्रोधम् (दुरेवस्य) दुःखेन प्राप्तुं योग्यस्य (शर्द्धतः) बलवतः॥१२॥
भावार्थभाषाः - ये राज्यं शासन्ति ते दुर्बुद्धीन् हिंसकान् वशं नयेयुः। यदि वशं न गच्छेयुस्तर्ह्येतान् प्रसह्य हन्युर्येन न्यायप्रणाशो न स्यात् ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ -जे राज्यशासन करतात, त्यांनी निर्बुद्ध हिंसकांना अंकित करावे. जर अंकित न झाल्यास त्यांचे जबरदस्तीने हनन करावे, कारण न्याय नष्ट होता कामा नये. ॥ १२ ॥