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अ॒ना॒नु॒दो वृ॑ष॒भो दोध॑तो व॒धो ग॑म्भी॒र ऋ॒ष्वो अस॑मष्टकाव्यः। र॒ध्र॒चो॒दः श्नथ॑नो वीळि॒तस्पृ॒थुरिन्द्रः॑ सुय॒ज्ञ उ॒षसः॒ स्व॑र्जनत्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

anānudo vṛṣabho dodhato vadho gambhīra ṛṣvo asamaṣṭakāvyaḥ | radhracodaḥ śnathano vīḻitas pṛthur indraḥ suyajña uṣasaḥ svar janat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒न॒नु॒ऽदः। वृ॒ष॒भः। दोध॑तः। व॒धः। ग॒म्भी॒रः। ऋ॒ष्वः। अस॑मष्टऽकाव्यः। र॒ध्र॒ऽचो॒दः। श्नथ॑नः। वी॒ळि॒तः। पृ॒थुः। इन्द्रः॑। सु॒ऽय॒ज्ञः। उ॒षसः॑। स्वः॑। ज॒न॒त्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:21» मन्त्र:4 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:27» मन्त्र:4 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो जैसे (उषसः) प्रभात से (स्वर्जनत्) दिन के समान सुख का प्रकाश हो वैसे जो (अनानुदः) नहीं प्रेरित (वृषभः) सर्वोत्तम (गम्भीरः) गम्भीर आशयवाला (ष्वः) ज्ञाता (असमष्टकाव्यः) जिसको अच्छे प्रकार कविताई न व्याप्त हुई न जिसके मन को रमी (रध्रचोदः) जो रुकावटी पदार्थों को प्रेरणा देने और (श्नथनः) दुष्टों की हिंसा करनेवाला (वीळितः) विविध गुणों से स्तुति किया गया (पृथुः) विस्तृत फलयुक्त (सुयज्ञः) सुन्दर-सुन्दर जिसके विद्वानों के सत्कार आदि पदार्थ (इन्द्रः) जो सूर्य के समान अच्छी शोभावाला विद्वान् है जिसने (दोधतः) हिंसक का (वा) (वधः) नाश किया वह सबको सुख देने के योग्य हो ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अपने से विविध गुण और कर्मों का आचरण श्रेष्ठों का सत्कार और दुष्टों की हिंसा करते हुए सर्वशास्त्रवेत्ता धर्मात्मा हैं, वे सूर्य के समान प्रकाश करनेवाले हों ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या यथोषसः स्वर्जनत्तथा यो नानुदो वृषभो गम्भीर ष्वोऽसमष्टकाव्यो रध्रचोदः श्नथनो वीळितः पृथुः सुयज्ञ इन्द्रोऽस्ति येन दोधतो वधः क्रियते सर्वेभ्यः सुखं दातुमर्हेत् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अनानुदः) अप्रेरितः (वृषभः) सर्वोत्तमः (दोधतः) हिंसकस्य (वधः) नाशः (गम्भीरः) गम्भीराशयः (ष्वः) ज्ञाता (असमष्टकाव्यः) असमष्टं न सम्यग् व्याप्तं काव्यं कवेः कर्म यस्य सः (रध्रचोदः) यो रध्रान् सरोधकान् चुदति प्रेरयति सः (श्नथनः) दुष्टानां हिंसकः। अत्र वर्णव्यत्ययेन रस्य नः (वीळितः) विविधैर्गुणैः स्तुतः (पृथुः) विस्तीर्णबलः (इन्द्रः) सूर्य इव सुशोभमानः (सुयज्ञः) शोभना यज्ञा विद्वत्सत्कारादयो यस्य सः (उषसः) प्रभातात् (स्वः) दिनमिव सुखम् (जनत्) जायेत ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या स्वतो विविधगुणकर्माचरन्तः श्रेष्ठान् सत्कुर्वन्तो दुष्टान् हिंसन्तः सर्वशास्त्रविदो धर्मात्मानो भवेयुस्ते सूर्यवद्विद्याप्रकाशकाः स्युः ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे आपल्या विविध गुणकर्मांचे आचरण करणारे, श्रेष्ठांचा सत्कार व दुष्टांची हिंसा करणारे, सर्व शास्त्रे जाणणारे धर्मात्मे असतात ती सूर्याप्रमाणे प्रकाश देणारी असावीत. ॥ ४ ॥