वांछित मन्त्र चुनें

तं दे॒वा बु॒ध्ने रज॑सः सु॒दंस॑सं दि॒वस्पृ॑थि॒व्योर॑र॒तिं न्ये॑रिरे। रथ॑मिव॒ वेद्यं॑ शु॒क्रशो॑चिषम॒ग्निं मि॒त्रं न क्षि॒तिषु॑ प्र॒शंस्य॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ devā budhne rajasaḥ sudaṁsasaṁ divaspṛthivyor aratiṁ ny erire | ratham iva vedyaṁ śukraśociṣam agnim mitraṁ na kṣitiṣu praśaṁsyam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तं। दे॒वाः। बु॒ध्ने। रज॑सः। सु॒ऽदंस॑सम्। दि॒वःपृ॑थि॒व्योः। अ॒र॒तिम्। नि। ए॒रि॒रे॒। रथ॑म्ऽइव। वेद्य॑म्। शु॒क्रऽशो॑चिषम्। अ॒ग्निम्। मि॒त्रम्। न। क्षि॒तिषु॑। प्र॒ऽशंस्य॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:2» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:20» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:1» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (देवाः) विद्वान् (बुध्ने) अन्तरिक्ष में वा (रजसः) लोक के बीच में वा (दिवस्पृथिव्योः) सूर्य पृथिवी के बीच (अरतिम्) प्राप्त (सुदंससम्) जिससे सुन्दर काम बनते हैं (शुक्रशोचिषम्) और शीघ्रता करनेवाला तेज जिसमें विद्यमान (वेद्यम्) जानने योग्य (तम्) उस (अग्निम्) अग्नि को (क्षितिषु) पृथिवियों में (प्रशंस्यम्) प्रशंसनीय (मित्रम्) मित्र के (न) समान वा (रथमिव) रथ के समान (न्येरिरे) निरन्तर कँपाते अर्थात् चलाते हैं, वे अत्यन्त सुख को क्यों न प्राप्त होवें ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! यदि आप लोग अन्तरिक्ष में स्थित पदार्थों में वर्त्तमान अग्नि को जानकर रथ के समान कार्यों में चलावें, तो वह मित्र के समान कार्यों को सिद्ध करे ॥३॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

ये देवा बुध्ने रजसो दिवस्पृथिव्योर्मध्येऽरतिं सुदंससं शुक्रशोचिषं वेद्यं तमग्निं क्षितिषु प्रशंस्यं मित्रन्न रथमिव न्येरिरे ते महत्सुखं कथं न लभेरन् ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) पूर्वोक्तम् (देवाः) विद्वांसः (बुध्ने) अन्तरिक्षे (रजसः) लोकस्य मध्ये (सुदंससम्) शोभनानि दंसांसि कर्माणि यस्मात्तम् (दिवस्पृथिव्योः) सूर्यभूम्योर्मध्ये (अरतिम्) प्राप्तम् (नि) नितराम् (एरिरे) कम्पयन्ति गमयन्ति (रथमिव) (वेद्यम्) वेदितुं योग्यम् (शुक्रशोचिषम्) शुक्रमाशुकरं शोचिस्तेजो यस्मिंस्तम् (अग्निम्) विद्युदादिस्वरूपम् (मित्रम्) सखायम् (न) इव (क्षितिषु) पृथिवीषु (प्रशंस्यम्) प्रशंसितुमर्हम् ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यद्यन्तरिक्षे स्थितेषु पदार्थेषु वर्त्तमानं वह्निं रथवत्कार्येषु चालयेयुस्तर्हि स मित्रवत् कार्याणि साधयेत् ॥३॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जर अंतरिक्षात स्थित असलेल्या पदार्थातील अग्नी जाणून रथाप्रमाणे कार्यात चालविल्यास तो मित्राप्रमाणे कार्य सिद्ध करतो. ॥ ३ ॥